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। सो थे गुरण गृहपति रत्र का है। १३ । चक्री के मन क सुखकारी असवारी का देनेहारा, ऐरावत इन्द्र के
हस्ती समान विजयगिरि नाम सुन्दर हस्ती रत्न है । १२ । वांच्छित असवारी देनेहारा, पवन समान धेग ते । चलनहारा, चञ्चल, सुन्दर अश्व है।२३। महासती, शची समान रूप की धरनहारी, महासुन्दर, चक्री के मन
कौं धरनहारी, आज्ञाकारिणी, महाबलवती रत्न चूर्ण करें ऐसी, स्त्री रत्न है ।२४. ये सात चेतन रत्र है। सब मिलि चौदह होय हैं। ये जहां-जहां उपजै, सो स्थान बताईये हैं। चक्र, छत्र, असि. दरड ये चार तो आयुधशाला में उपजें हैं । चरम, काकिणी, चूड़ामणि—ये तीन श्रीगृह में उपज हैं। हस्ती, घोटक, स्त्रीये तीन विजयार्द्ध पर्वत 4 उपजें हैं। सिलावट, पुरोहित, सेनापति, गृहपति—यै च्यारि निज-निज नगरी में । इस हैं । जे दह रनों का सामान्य व समा दाह्या । विशेष अन्य पुराणन तें जानना । इति चौदह रत्न । आगे नव निधि के नाम व लक्षण कहिये हैं। काल, महाकाल, नैसर्व, पाण्डक, पदम, मासव, पिंगल, शंख और सर्व रस्त्र ये नवनिधि हैं। ये कहा-कहा कार्य करें हैं, सोही कहिये हैं । काल निधि तो वांच्छित पुस्तक देय है। ५ । महाकाल वांच्छित असि देय है। २। वांच्छित भोजन देय, सो नैसर्प निधि है। ३ । वच्छित षट्ररस देय, सो पाण्डक निधि है। ४। वांच्छित वस्तु देय, सो पदम निधि है। ५। योच्छित नीति शास्त्र व शस्त्र देय, सो मारणव निधि है।६। वांच्छित आभूषण देय, सो पिंगल निधि है । ७। अनेक बाणे देय, सो शंख निधि है।८। वांच्छित सर्व रन देय, सो सर्व रत्न निधि है।।। ये सर्व मिलि नव निधि जानना । सो इन निधिन के आकार व प्रमाण कहिए है। र सर्व निधि गाड़ी के आकार हैं। लम्बी चौकोर जानना । आठ पहियान सहित हैं। सो एक-एक निधि, बारह-बारह योजन लम्बी है । नव-नव योजन चौड़ी है। आठ-आठ योजन ऊँची है। एक-एक निधि के हजार-हजार देव रत्तक हैं। इन निधिन पै चक्री को आज्ञा है। ये निधि, चक्री के पुण्य प्रमाण हैं। ऐसे चौदह रत्र, नव निधि र पुण्य का फल है, बिना पुण्य नाहीं। इति निधि। आगे चक्री की सेना षट प्रकार है,सो कहैं हैं । तहाँ प्रथम नाम--हस्ती चौरासी लाख, रथ-सैन्या. चौरासी लाख चौड़ा, अठारह कोड़ि सर्व दोऊ श्रेसी | के विद्याधरन की सैन्या, भरतक्षेत्र सम्बन्धी देवन को सैन्या, पयादेन की सेन्या-ये षट् प्रकार की सैन्या है। सामान्य राजा के तो च्यारि जाति की सैन्या होय देव विद्याधर की सैन्या नहीं होय । अरु चक्रधारी के षट