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भी पर-भव मैं तीर्थक्कर के पश्चकल्याणक देख तथा सूनि करि, हर्षवन्त भये होंय तथा जिन-पूजा, जिन-प्रतिष्ठादि मङ्गलाचार उत्सव देख, अनुमोदना करी होय तथा पुण्योदय तें काऊ के घर मङ्गलाचार गाजते-बाजते देख, हर्षित मया होश ताश कोई तर शोक, चिप, देव तिनकी दया करी होय इत्यादिक पुण्य भावन तें सदैव घर में मङ्गल होय है। १२५। ऐसे एक सौ पच्चीस प्रश्न शिष्य नैं गुरु तें स्व-पर कल्याण के अर्थ किये। सो ये प्रश्र हैं, | इनमें के केतक प्रश्न तो त्रैलोक्यनाथ को माता तें देवांगना ने करै हैं। तिनके उत्तर तीर्थकर की माता ने दिये हैं और केतक प्रश्न, राजा श्रेणिक महाधर्ममूर्ति बुद्धिमान ताने गौतम स्वामी गणधर तें करे। तिनके उत्तर श्रीगौतम स्वामी ने दिये हैं। सो इनकौं इकट्रेकरि, यहां भव्य जीवन के कल्याण हित, समुच्चय बखान किये। तिनके भेद जानि, पाप पंथ तजि, सुपंथ लागि, अनेक जीवन में पुण्य बन्ध किया और इनकौं सुनि अनेक भव्य, पुण्य उपारजेंगे तातै विवेकी इस प्रश्नमाला कौं बांचि, निकट संसारी इनका रहस्य पाय, अपना कल्याण करें। इस प्रश्नमाला के धारण किये, भव्य जीव भव-भव में सुखी होय । कैसी है ये प्रश्रमाला ? गुरु के वचनरूपी महा शुभ सुगन्धित फूल तिनको बनाई है। सो इस माला कों निकट भव्य मोत्तरमखो का दुलह, हर्षाय के अपने हृदय विर्षे पहरि, सुस्त्री होऊ। कवीश्वर कहै हैं, इस माला कुं मैं अनेक हृदय में फेरि, जपना भव सफल जानि कृत-कृत्य मया और भी जे अमर-पद के लोभी इस प्रश्नमाला को अपने कण्ठ में पहिरेंगे। ते भन्धात्मा कल्याण के वांछो, सुबुद्धि, युग भव में तथा भव-भव में शोभा पावेंगे। रोसी जानि इस प्रश्नमाला कं धारण करहु । इति श्री सुदृष्टि तरङ्गिणी नाम ग्रन्थ के मध्य में अनेक ग्रन्धानुसारेण, प्रश्नमाला कर्मविपाक वर्णन करनेवाला
गुणतीसवां पर्व सम्पूर्ण भया ॥ २१ आगे हिंसा विर्षे पुण्य का अभाव बताव हैंगाथा-पय बहणो बल पदमो,जल मथ घो धाण होय तुख खण्डम । रवि हिम ससि तप करई, तब हिंसा पुष्प दे भो बादा ॥१२॥
अर्थ-पथ वहणी कहिये, जल विर्षे अगनि । थल पदमो कहिये, पृथ्वी में कमल । जल मथ धी कहिये, पानी के बिलोये धृत । धारण होय तुख खण्डय कहिये, भ्रस के कटे अन्न । रवि हिम कहिये, सूर्य के छगते
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