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ताते हे भव्योत्तम! ये ऊपर कहे उत्कृष्ट पद, सो इन सर्व के सुख, सर्व दया-भाव का फल है। ऐसा
जानि विवेकी पुरुषन कौ सर्व हितकारिणी जो दया, ताकौं धारणा योग्य है। आगे और भी दया-भाव को श्री || महिमा कहिये हैगाथा-तण वीजय बहु दासऊ, भय रहियों सोक तोत चतुयायो। तगति लव चिर सुहियो, ए किप्या फल होप मुह मादा ॥१३॥
अर्थ-तरा वीजय कड़िये, तन का तीर्य । बह दासऊ कहिये, बहत दास । भय रहियो कहिये, भय रहित । सोक तीत कहिये, शोक रहित । चतुयायो कहिये, चतुर । तणांत लव कहिये, तन के अन्त लू । चिर सहियो कहिये, बहुत काल तक सूखी। र किप्पा फल होय सुहादा कहिये, हे आत्मा। ये दया-भाव का फल है। भावार्थ-शरीर विरे बड़ा वीर्य होय । सो जैसे-चक्री में षट्-खण्ड के मनुष्यन से अधिक पराक्रम होय है । ऐसा बल पावना तथा तीन खण्ड के मनुष्यन मैं जेता बल होय, तेता पराक्रम एक वासुदेव में होय, जैसा जोर पावना तथा कोडि योद्धान का बल पुरुष में होय, ऐसा कोटी मट का बल पावना । लाख जोधान को एकला जोतै, सो लख भट है। ऐसा बल पावना। सहस्र योद्धा जीते, सौ सहस भट का बल पावना । शत भटकी जीते, सो शत भट होना । ऐसे कहे जो पराक्रम, सो सब दया का फल है। जिन जीवन मैं हिंसा करि पर-जीव घाते हैं । ते जीव भवान्तर में एकेन्द्रिय-विकलत्रय में होन-शक्ति धारी उपजै हैं और कदाचित तिर्यच-पंचेन्द्रिय उपण तथा मनुष्य उपजें तो दीन, रोगी, शक्ति रहित, दरिद्री, हीन भागी होय । सो ये भी पर-जीवन को दीन जानि, तिनकी घात का फल जानना और अनेक सेवक, बड़े-बड़े सामन्त, महाबल के धारी योधा, पराक्रम धारी आय-आय हस्त जोड़ नमस्कार करें। ऐसे बली, मानी राजा हजारौं जाकी सेवा करें, आज्ञा याचे, विनय करें, सो ऐसा पद पावना भी दया-भाव का फल है। पर-जीवन की सेवा आयआय करना, हस्त जोड़ आज्ञा माननी सो, हिंसा-भाव का फल है और जिनने पर-भव में तीर, गोली, गिलोल, लाठी, मूकी, शस्त्रादिक ते पर-जीवन कू भय उपजाया होय। ताके पाप फल तें भवान्तर में आय मनुष्य-पशु में उपजै, तहाँ भयानक रहै। सदैव ताका हृदय, भय तें कम्पायमान होय। सो भय के सात भेद हैं। इस भव का भय, पर-भव का भय, मरण का भय, रोग का भय, अनरसा भय, अगुप्त भय और अकस्मात् मय ये नाम हैं।
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