________________
पूजा, गीत होते मरा। अनेक सुखपूर्वक तरुण अवस्था को प्राप्त होय, महासम्पदा के धनी हुए, सो दया-भाव औ का फल है। सो रोसा जानि अपने सुख की, पर-जीवन को रक्षा करना योग्य है। आगे और भी दया-भाव की || महिमा बतावे हैंगाथा-झहियो आरय झांणउ तणांगोपांगाय सहु णीको । मर बन्धव णंह करयो कोमल चित्तोय होय किप्पाए ॥ १३४ ॥
अर्थ-महियो आरय झोराउ कहिये, आध्यान करि रहित होघ । तगांगोपांगाय सहु सीको कहिये, तन के अङ्गोपाङ्ग सकल शुद्ध होय। सउ बन्धव रोह करयो कहिये, सकल बांधवन विधैं प्रीति हीय। कोमल चित्तीय कहिये, कोमल चित्त का होना। होय किप्यार कहिये, ए सब दया-भाव होथ। भावार्थ-जीव कुं नहीं सुहावती जो वस्तु, तिनके मिलाप कर मई जो आरति तथा भली वस्तु के जाने को आरति, खोटी वस्तु के मिलापको भारत, रोग होने की सयाभय के मेटने को आरति तथा आगे मैं रोसा करूंगा इत्यादिक मावन के विचार कर अपने उर में खेद का करना सो निर्दय भाव का फल है और इन च्यारि भेद आत-भाव रहित निराकुल सुख रूप भाव रहना, यह दया का फल है और जिन अङ्गोपाङ्ग सहित सुघड़ शरीर पाया होय, सो दया का फल है। तिन अङ्गोपाङ्ग के नाम हस्त दोय, पोव दोय, छाती, पीठ, मस्तक और नितम्ब-ए अष्ट अङ्ग हैं। सो इनका शुम-शास्त्रों प्रमाण आकार पावना सो करुणा भाव का फल है और केई नेत्र रहित, केई जिला रहित, केई श्रोत्र रहित इत्यादिक उपाङ्ग रहित होना तथा पांव रहित, हाथ रहित होना । अंगुली नासिकादि अङ्गोपाङ्ग करि हीन होना । महाविकट शरीर का आकार, भयानक पांव के रूप होना, महाकुघाट शरीर पावना, ये सब निर्दय परिणाम का फल है और सर्व कुटुम्ब माता, पिता, भाई, पुत्र, स्त्री इत्यादिक सर्व बांधव सुखकारी मिलना, सो दया-भाव का फल है। पुत्र भला, ताक पिता खोटा। भला पिता कू पुत्र स्खोटा। भली माता के पुत्रपुत्री दोऊ खोटे। पुत्र-पुत्री को माता खोटी। परस्पर भाई खोटे। भलो स्त्री कू भतार खोटा। भले भर्तार कू
स्त्री खोटो। इत्यादिक परस्पर कुटुम्ब विषं विरोध-भाव केई महाक्रोधी, केई मानी, केई दगाबाज, केई ४४५
लोभी, केई कुव्यसनी, केई चोर, केई ज्वारी, केई पाखण्डी और केई परस्पर बांधव द्वेष सहित विरोधी मिलें, सो हिंसा-भाव किये, तिनका फल है और जिन जीवन के दीर्घ पुण्य का फल उदय होय, सो कोमल