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अब इनका सामान्य स्वरूप बताइए हैं। तहां इस पर्याय में मोकों कछु दुःख नहीं होय। ऐसा विचार राखना, सो इस भव का भय है।३। और पर-भव में मोकौं तिर्यंच गति के दुःख नहीं होय, नरक के दुःख नहीं होंय तो भला है। ऐसे विचार का नाम, परलोक का भय है। २। मरण समय महावेदना होतो सुनिये है। सो परस समय मोकों वेदना नहीं होय, तो मला है। ऐसे विचार का नाम, मरण भय है।३। और जहां औरन की अनेक रोग-वेदना देख, भयवन्त होना। जो ये रोग के बड़े दुःख हैं मोकों कोई बड़ा रोग नहीं होय तो मला है। ऐसे : भय रूप रहना सो रोग का भय है। और जहाँ यह कहना कि जो मेरे कोई सहायक नाहीं। सहाय बिना सुख कैसे होय? मैं अशक्त हों। ऐसे भय रूप होय विचार करना सो अनरक्षा भय है। और यहां मोकों तथा वहां मोकों, कोई भय नहीं होय । मैं इस घर में बैठा हो सो घर नहीं गिर पड़े तथा इस घर में कोई सादि दुष्ट जीव मोकों खाय नहीं तथा कोई वरी मोको मार नहीं इत्यादिक भय रूप भाव रहना, सो अगुप्त भर है।६। पोलों कोई अचानक-नामस्मात् भय नहीं होय तो भला है । ऐसे भावन में भय राखना सो अकस्मात भय है। ७ । रोसे कहे जे सप्त भय सो जीवन • दुःख उपजाते हैं। सी ऐसे भय का होना सो निर्दय भावन तें पर को भय उपजाय. ता पाप का फल है। इन ही सप्त भय ते रहित, निर्भय भाव निःशङ्क होय रहना सो दयाभाव का फल है और जिननैं पर-भव में मन, वचन, काय करि पर-जीवन को शोक करया होय तिस पाप के फल ते भवान्तर में सदैव शोक रूप रहैं। सदेव शोक रहित सदा सुखी मङ्गलाचार रूप रहना, सो दया-भाव का फल है। जाने पर कौ बुद्धि सीखने में, ज्ञानाभ्यास में घात करी होय। द्वेष-भाव ते पराई बुद्धि, घात करी: होय। सो बुद्धि रहित मूर्ख उपजै। अनेक बुद्धि का प्रकाश पावना, अनेक कला पावनी, धर्म-कर्म सम्बन्धी अनेक चतुराई का पावना इत्यादिक गुण होना, सो पर-जीवन को दया का फल है। कोई जीव माता के गर्भ में आया, सो नव मास तो उदर में दुःखी भया। फेरि जन्म घरचा। सो जन्म से ही माता-पिता का मरण भया। तब असहाय होय, महादुःख त आयु के वशाय जोय. तरुण भया। सो भी ऐसे ही अत्र रहित, पट रहित, धन रहित, मान रहित इत्यादिक महादुःख ते पर्याय पूरो करि, पर-भव गया। सो ये निर्दयी भावन का फल है। जब मैं माता के गर्भ में आए. तब हो सदैव घर में पूरा मङ्गलाचार होना। जन्म भया तब से ही, अनेक दान,