________________
इन्द्रिय जनित सुख देय सो भी शाश्वत नाहीं। किञ्चित काल सुखसा दिसाय विनश जाय । और श्री गुरु कल्पवृत्त हैं। सो भव्य जीवन कू घर बैठे ही वांच्छित सुख देवे कूआए देश बिहार करि सबको आशा पूरै हैं। 11 YX ताते श्री गुरु धन्य हैं। जिनको क्रिया करि संसारी जीव मोक्ष पावै। ऐसे नाना प्रकार गुरुको महिमा करि पीछे शिष्ध गुरुके बताये ना पर तय सिमा करिने यो नाका भार होय है। तातें प्रथम जानना होय पोछे जानी वस्तुका पक्षा श्रद्धान होय। सो श्रद्धान होय तो कष्ट पाय के भी अपने भलेका कार्य करें हो करै। ऐसे तेरे प्रश्नका समाधान जानना। ताते हे भव्य पहिले तो भली-बुरी वस्तुका जानपना होय। भले प्रकार जाने पीछे ताका दृढ़ श्रद्धान होय और भलो-बुरीका निर्धार कर है। और कोई बाल-बुद्धि पदार्थ को नान। परन्तु तामें ताका ग्रहण-त्याग नहीं करि जानें। ऐसा मिथ्यादृष्टि मोहित भोले जीव संसारमें बहुत हैं। इनके ज्ञान के जानपनका इनकौं कछु नफा नाहीं। इन मिथ्याज्ञानीनका जानपना निज-पर जीवन के ठगने कौं प्रगट होय हैं। और सम्यक्त्व सहित जानपना है सो तामें पहिले श्रद्धान करि पोचे तिनका त्याग-ग्रहण होय है। सो जो अपने भले योग्य हितकारी परभवमें सुखकारी होय सो ताका तो ग्रहण करे। और जो पदार्थ
आपको इस भव-परभव में दुखकारी होंय, पाप बंध करता होय, परंपराय जात दुख होता जाने, तिन पदार्थनका त्याग करे। रोसा त्याग-ग्रहरा करि सम्यकदृष्टि जीव नैं ऐसा विचारया। जो सर्व धर्म-अजनमें एक दया भाव है सो मुख्य धर्म है। काहे तें जो तप, संयम, दान पूजादि हैं सो तो धर्मके अङ्ग हैं। जीव दया है सो ये मूल धर्म है। इस जीव दया के पालवे के निमित्त धर्म है। सो हिंसाके कारण राज्य, गृहारम्भ छाडि अपने तन सम्बन्धी भोगन तैं ममत्व भाव छोड़ के पीछे मोह तजि, नग्न काय होय, सर्व षट-कायिक जीवन के सुख देवे कौं, आप यतिका पद धरया। तहाँ सर्व प्रकार जीवन की रक्षा करि, जगत्पूज्य सिद्ध पद ताकौ पाय मोक्ष स्थान विर्षे अखण्ड सुखी होता भया। तातें यह बात सिद्ध भइ, कि जो दया ही धर्म है। दया बिना कोई धर्म कहै, सो वृथा है। और लौकिक में भी बाल-गोपाल दया हो कौं धर्म कहै हैं। तथा और देखो, इस दया की षट मत विर्षे प्रसिद्धि है। व सर्व जीव यश गावैं हैं। देखो जो अज्ञान-रंक भूखा होय, सो भी ऐसा कहै है। कि जो हम भूखे हैं सो कोई दया धर्म का धारी होय, सो हमारी दया कर हमारा दुख मैटो। सो देखो, रंक भी ऐसा