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जाने हैं और दया की ही धर्म कहैं हैं। तो जे विवेकी हैं सो तौ दया मैं धर्म कहैं ही। ताते रोसा जानना, || जो ये दया सो ही धर्म है। तात जगह-जगह जिनेश्वर देव ने भी ऐसा ही कया है। कि दया धर्म है।। श्री | सो अब रोसा विचार के, धर्म राक दया ही का निश्चय करना। अब रोते भी कोई प्राणी, जीव घात में ही मु| धर्म मानें, तो याका चित्त ही महाकठोर है। याका पर-भव बिगड़ना है व दुःखी होना है। थाकों पर-मव
में दुःखदायक पर्याय उपजैगी। दोन, दरिद्री, अन्धा, असहाय हीन होना है तथा नारकी व पशु होना है। इन स्थान में महादःखी होयगा। इसका किया ये ही भोगवेगा। इसके श्रद्धान की यही जाने। परन्तु हमने तौ रौसा ठीक किया, कि जो धर्म रक दया-भाव है । तातें जिनकौं परम सुख की इच्छा होय । सो धर्मात्मा, सर्व जीवन ते क्षमा-भाव करि षट् काय जीवन को अभयदान देओ। बहुत कहने करि कहा । ऐसा अवसर फिर मिलना कठिन है। इति श्रीसुदृष्टि तरंगिणी नाम ग्रन्धके मध्यमें हिंसा निषेध, दया का माहात्म्य वर्णन करनेवाला तीसयो पर्व सम्पूर्ण भया ॥३०॥ ___आगे राज लक्षणों का स्वरूप कहिये हैं। जाकरि प्रजा सुखी होय, राजा का तेज-प्रताए बधै, लक्ष्मी बधे, यश होय, सुखी रहे, पर-भव सुधरे। ऐसे गुण श्री आदि पुराण जो अनुसार कहिये हैगाथा-षट् गुण चक विद्याए, पण दल अणि होय सुभग गुण सेसा: सज णिप जस लछिपायइ, फूण तव लेय होय सिक णाहो ॥१३॥
अर्थ-षट गुण चव विद्यारा कहिये, छःगुण अस च्यारि विद्या । परा वल अणि होय सुभग गुण सैसा कहिये, पञ्च-बल और अनेक गुण होय । सरशिप जस लछि पावइ कहिये, सी राजा यश-सम्पदा पावै । फुरा तव लेय होय सिव साहो कहिये, फिर तप लेय मोक्ष लक्ष्मी का भरतार होय । भावार्थ-रोसे षट् गुरा, च्यारि विद्या अरु पञ्च-बल—ये राजान के गुण हैं। सो जिनमें ये गुण होय, सो भला प्रजापति है । सो ही प्रथम षट गुण कहिये हैं। प्रथम नाम- सन्धि, विग्रह, यान, आसन, संस्थान और आश्रय-ये षट भेद हैं।
अब इनका विशेष कहिये है। तहां कोई आप से अधिक बलवान राजा, बड़ी फौज का धारी होय तथा ४५१] आगे कहेंगे राजाओं के पांच गुण, सो आपते पर-राजा के पास बहुत होय आप त पश्व-बल भी तिस राजा
के पास बलवान होंय । जाते युद्ध किए जोतिरा नाही। ऐसा बलवान वैरी होय । तौ ताकौ ग्राम, देश, धरती