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सो राजा यश पावै। परम्पराय शुभ गति भोग. मोक्ष पावै। इति च्यारि राज्य विद्या। आगे राजा के पञ्च-बल || कहिये हैं। प्रथम नाम-भाग्य-बल, देव-बल, मन्त्र-बल, शरीर-बल और सामन्त-बल। जब इन पश्च-बलन का | सामान्य अर्थ कहिये है। जानें पूर्व-भव में विशेष पुण्य किया होय, सो पुण्य के उदयवाला जीव राज्य पाये। तौ ताक पुण्य के आगे, अन्य राजा सहज ही भय खाय, आय-आय शोश नमावै, सेवा करें, आज्ञा याचें. अपने मुकुट नमावै, ताकौ अपना प्रभु मानें। जैसे—तीन खण्ड का राजा वासुदेव तथा षट खरड का राजा चक्रवर्ती है। सो इनका राज्य, पुण्य के उदय का है। क्योंकि जो इनकी दृष्टि महासौम्य है। वचन महामिष्ट हैं । तिनको मूर्ति महाविश्वास उपजावनहारी, सुन्दर मनकौं मोह उपजावै। महासज्जन, तिनके वचन सुनते-पर-जीवन कू समता होय स्थिरता बन्धे 1 आप तौ रोसे और इनका वाय प्रताप ऐसा कि तिनके भयसं देव विद्याधर कम्पायमान होथ। कोई जज्ञा भंग नहीं करि सके। बिना भय बताये हो बड़े-बड़े पृथ्वीपति माय-आय मुकुट नमा। ऐसा उनके पुण्यका तेज है। जैसे सूरज, मूलमें तौ तिसको प्रभा शोतल है परन्तु औरनको तेजकारी होय है। तैसे हो सूर्यको नाई तेज धारै। सो राजाओंका भाग्य बल है। २। और कर्म जाका भला करै, ताकौं कौन विगाड़ि सकै ? जाकों कम भला दिखावै ताको बुराई काहू तें नहीं होय । जैसे रावण तीन खण्डका नाथ सर्व विद्याधरनका नाथ महा न्यायो, महा बलवान्, अरु जिसके विभीषण-कुम्भकरणसे भाई अरु इन्द्रजीत-मेघनादसे घुन जाके। ऐसा रावण जानें इन्द्र-विद्याधरकों जोत्था । अरु जीवता पकड़ लाया। रोसा राक्षसनका पालनहारा, तीन खरडका अधिपति। रोसे बलीकों राम-लक्ष्मण दोई माईनने युद्धमें जीत्या। ये कर्मका बल है। जाकों कम जितावै सो जोते । जाका कर्म भला करै ताका भला होय । सो दैव बल है। तथा जैसे मैनासुन्दरीने कही। . सुख-दुख कर्म करै सो होय । तब ताके पिताने द्वेष-भावतें कर्म-परीक्षा करनेक अपनी पुत्री श्रीपालजीकू, कोढ़ी जानि परनाई। पीछे शुभ कर्म ते श्रीपालजीका कुष्ट गया। राज्य पाया। मैनासुन्दरी आठ हजार रानीनमें पट्टरानो होय सुखी भई। तब ताके पिताने देख कर्म-कर्तव्य सांचा जाना। सो यह देव बल है। २। और जाने नाना प्रकारको विद्याका साधन करि अनेक विद्यान को अपने आधीन करो। तिन विद्यानके प्रसाद करि अनेक मानो राजा जोति अपनी आज्ञा मनवावै। सो मन्त्र बल जानना।३। और अपने शरीरका भुजबल