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ऊच-कुलो उपदश नीच-कुलोक उपदेश चंचल बुद्धिक ऐसे बालकतरुण स्त्रीक वृद्ध स्त्रीक, पति सहित श्री। स्त्रीकं विधवा स्त्री को ऐसे इत्यादिक यथा योग्य उपदेश देनेकी कला। जैसे शिष्यजनका भला होता जाने,
तसे तिनके परभव सुधारवेकौं उपदेश देना सो शिक्षा-कल्प विद्या है। ५। अनेक प्रकारके शब्दको स्पष्टता विभक्ति सहित पद सहित लिंगके साधन, धातूनके साधन सहित, शुद्ध शब्दका बोलना । जनेक गद्य काव्य, छन्दनका विभक्ति अर्थ सहित पदच्छेदन सहित, भले प्रकार अर्थ करना। इत्यादिक संस्कृतका विशेष ज्ञान बधावना सो व्याकरण विद्या है।६। जहां अनेक जातिके छन्द गाथा, आर्या, श्लोक काव्यइत्यादि बहुत प्रकार छन्दको चाल जानना, परकौं उपदेश देना सिखावना सो छन्द विद्या है। ७। जहां नाना प्रकार अलंकार जैसे स्त्री का मुख चन्द्रमाके समान तथा यह नरेन्द्र अपने प्रतापके आगे सूर्यकं जीत है। इत्यादिक अलंकार कलाका सीखना-जानना-उपदेश देना सो अलंकार विद्या है।८। जहाँ चन्द्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा, इत्यादि इनके गमनागमन क्रिया तें शुभाशुभ फलका सीखना जानना उपदेशना सो ज्योतिष विद्या है। ।। जहाँ नाना प्रकार को युक्तिका ज्ञान, अनेक युक्ति उपजावना। बहु प्रकार दृष्टांतादि कलाका सीखना उपदेश देना सो निरुक्त विद्या है । १०। जहाँ अनेक चतुरता सहित सभा रंजित बोलनेकी कला जैसा अवसर देखे तैसे शब्द बोलनेकी कला जैसा मनुष्य देखें तैसा बोलनेका ज्ञान इत्यादिक सभा व समय पहिचान अपता-पराया पदस्थ पहिचान बोलना, इत्यादिक चतुराई सहित, सर्व सभा रंजन, मिष्ट विनयकारो, आनन्दकारी वचन बोलनेको कला सो पति-हांसि कला नाम विद्या है । २१ और जहां धर्म कथाके अनेक पुराण बांचना, कंठ पाठ जानना-पढ़ना उपदेशना सो पुराण विद्या है । १२ । और जहां अनेक मीमांसादि मतांतरके शास्त्रनका पढ़ना रहस्य जानना । अनेक मतान्तरके वाद जीतने की कला नास्तिकमती, एकान्तमती, विनयवादी इन आदि अनेक मतानका रहस्य जानना, सीखना औरनकों उपदेश देना, सो मीमांसा विद्या है। १३1 और अनेक प्रकार तक-युक्ति उपजाय,
प्रश्न करना। न्याय करि पर-वादीको असत्य थुक्तिका खण्डना। अपना न्याय वचन स्थापना। पर-वादी ४५८
अनेक असत्य युक्ति देय ताका रहस्य जानि ताका खण्डना इत्यादिक न्याय पूर्वक नय-युक्तिका सोखना औरनकों उपदेश देना सो न्याय विद्या है । २४। ऐसे ये चौदह विद्या शास्त्रोक्त कही हैं। सो मान बढ़ानेके