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धर, अपने घर कों, राहमें चल्या जाय है। अरु भले मोदक खावता जाय है। ताकरि सुखी है। और एक पुरुष अपने मन्दिरमें तिष्ठता, शीतल जल पीवता, मला मोदक स्वायके सस्ती है। इन दोऊनमें तूं विचार, जो विशेष सस्त्री कौन है ? जाके शीश मोट है अरु मोदक सावता राह चलता जाय है, ताका सुख तो आकुलता सहित है। और शोश भार रहित, एक स्थान तिष्ठता मोदक खाय, सो सुख निराकुल है। सो कल्पवासीका सुख तो शीश गठियावारका-सा है। अरु अहमिन्द्रनका सुख, एक स्थान तिष्ठनेहारे समान है। ऐसा जानना और सुनौं जो व्रती पुरुष हैं, सो तौ मन्द कषायन करि सुखी हैं और इन्द्र-चक्री ये सुखी हैं सो संक्लेश-सुखी हैं। ताही तें देव, इन्द्र, चको आदि बड़े-बड़े पदधारी, व्रती पुरुषन की पूजै हैं. शुश्रूषा करें हैं। जरु ऐसी याचना करं हैं। जो है गुरो। तुम्हारी भक्ति के फल तें, हमारे भी आप कैसा निराकुल-स्वाधीन सुख होय । अरु हमारे शान्ति-भाव प्रकटै । ऐसी प्रार्थना करें हैं। सो यहां भी निराकुल सुख की महिमा आई। तैसे ही इन्द्र-देवन का सुख तौ साकुल है और कल्यातीतन का सुख निराकुल है, मन्द कषाय रूप है। तातें कल्पवासीन ते कल्पातातन का सुख अधिक जानना तथा जैसे-एक पविरा-खुजली के रोगवाला पुरुष, ताने एक टटेरे का क पाया। सो तिस टटेरे के ट्रंक ते अपना तन खुजाय, सुनी भया । सो टटेरे में कहा सुख है ? परन्तु याके तन में खुजली का रोग है । सो टटेरे तें खुजाया, तब वाजि का दुःख मिटने तें कछु सुखी भया और कोई पुरुष खाज रहित सुखी है । सो ये भी सुखी है। सो इन दोऊन मैं खुजली रोगवा तें, उस निरोगी के बड़ा सुख है। ताते हे भव्य ! देवांगना के सुख की वांच्छा सो ही मया खुजली का रोग सो जब देवांगना का निमित्त पावै, तब किंचित् सुखी होय है। सो ये खुजलीवाले रोगी समानि है। जब काम रूपी खुजली चले. तब देवांगना रूप ठटेस से खुजाय सुरही होय । सो कल्पवासी देव-इन्द्र का सुख देवांगना का जैसा जानना। अरु अहमिन्द्रन का सुख है सो खुजली रहित, निरोगी पुरुष जैसा है। इन कल्पातीतन के, काम रूप खुजली रोग नाहों। तातें ये परम सुखा हैं। कल्पवासीन के काम रोग है। बरु कल्पातीतन का रोग रहित सुख है। ऐसे तेरे प्रश्न का उत्तर जानना। सो ऐसा जो अहमिन्द्र पद है, सो । उत्तम दया का फल है और भवनवासी देवन का नाथ नागेन्द्र ताका पद, सो भी करुणा का फल है।
सुजाया, तब वाजि का दान
पुरुष खाज रहित सखी
ते, उस
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