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तथा औरन को इन स्थानकन में धन लगावते देख, भले जानें होंय । ऐसे पुण्य परिणामन तैं इस जीव का धन शुभ कार्य में लागे है । १०८ । बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरो ! यह जीव व्रत लेय मङ्ग करि डारै सो किस कर्म का फल है ? तब गुरु कही पर भ में पर-पवन के कधि तथा पराये शुद्ध व्रत कौं दोष लगाया होय तथा अन्य अज्ञानी जीवन कौं व्रत लेय भङ्ग करते देख अनुमोदना करो होय तथा कोई धर्मात्मा जीवन का व्रत, कोऊ दुष्ट भङ्ग करें है। सो तामैं सहाय होय. पराया व्रत भङ्ग कराया होय तथा बाल्यावस्था में अनेक बार कौतुक मात्र आखड़ी लेय-लेय के भङ्ग करो होय इत्यादिक अशुभ कर्म तैं भवान्तर में शिथिलांगी व्रत करनेहारा होय । १०६ । बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरो ! यह जीव पशु पर्याय में उपजि कसाई के हस्त तै मरे । सो कौन पाप का फल है ? तब गुरु कही — जिसने पर भव में कसाईं का किसव (व्यवसाय) किया होय तथा जिन नैं पर भव में अन्य जीवों को विश्वास देय, अनेक भले खान-पान पोष, तिनका घात किया होय तथा पर-जीवन को छल-बल करि हते होंय तथा पर- जीवन कौं मोल लेय, मारे होंय तथा पर-जीवन के अण्डा मोल लेथ मारे तथा अण्डे बैंचे होंय तथा पर-जीवन कौं पालि पीछे लोभ के अर्थ, कसाईन कों बेंचे होंय तथा बिना अपराध वन-जीवन को अपने हाथ तैं हते होंय तथा कसाई के घर का आमिष मोल लाय, भक्षण कर घा होय तथा पर- जीवन को कसाई के हाथ तैं मरते देख, सुख मान्या होय तथा पर- जीवन का आमिष बहुत खाया होय इत्यादिक पापन तैं जीव को कसाई के हाथ तैं मौति होय । ११० । बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरो ! यह जीव पाप परिणामी, पाप क्रिया सहित कौन पाप तैं होय ? तब गुरु कही - जानें पर भव में पापी, चोर, ज्वारीन का संग बहुत किया होय तथा पर- जीवन का घात किया होय तथा पापी जीवन को कुबुद्धि-पाप रूप क्रिया करते देख, अनुमोदना करी होय तथा हिंसा सहित जीवन को कुबुद्धि-पाप रूप क्रिया करते देख, अनुमोदना करी होय तथा हिंसा सहित पाखंडी जीवन के कल्पित देव गुरु मांस भक्षो, तिनकी सेवा-पूजा करी होय तथा धर्मात्मा जीवन की निन्दा करि, अविनय करि सुख मान्या होय तथा शुद्ध देव-गुरु-धर्म की निन्दा करि विपरीत भाव ह्या होय इत्यादिक अशुभ भावन तें पापी, पाप-क्रिया का करनहारा होय है । २१२१ बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरो ! यह जीव भली उत्तम मनुष्य पर्याय पाय खपत कैसे पाप तैं होय ? तब गुरु कही जाने पर भव में जन्य སྐུ
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