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कुमाग चलाया होय तथ: गुरु जनजामाता-पितादिक, तिनके हितकारी शिक्षा वचन सुनि, जाकी नहीं सुहाये होय। जिनने उल्टै गुरु जन कौ अविनय वक्न कहे होय। औरन को अविनय सहित चलते देख, जाप राणी
भया होय। शिक्षा के देनेहारे गुरु जन, तिनको हाँसि करी होय। स्वेच्छाचारी पशु पर्याय, तामैं हैं चय के | मनुष्य भया होय तथा पापाचारी, अधिनयो कुसंगो जोव तिनके वचन भले लागे हॉय इत्यादिक पाप भावन तें. I भली सीख वचन नहों सुहा हैं। २०६ । बहुरि शिष्य पूछी। है गुरो! इस जीव की अवधि, मनःपर्यय कौर
केवलज्ञान को प्राप्ति कौन शुद्ध परिणति तें होय ? तब गुरु कही हे भव्यात्मा ! सुनि। जिनने पर-भव में तपस्वी मुनि अवधि-मनःपर्यय ज्ञान धारी, तिनके ज्ञान का माहात्म्य देख, हर्ष पाया होय तथा ऐसे दीर्घ शान के धारी तपस्वी, लिनको सैना-चाकरी करि, अपना भव सफल मान्या होय तथा ऐसे अवधि-मनःपर्यादिमान का अतिशय देण, तिनको बहुत महिमा करो होथ, बारम्बार स्तुति करो होय, तिन तापसी ज्ञान-भण्डार यतीन की वैघाव्रत्य करने की अभिलाषा रही होय तथा मुनि पद धारि अवधि मनःपर्यय ज्ञान उपायवे की वौच्छा रही होय तथा केवली के वचन सुनि, सत्य जानि हर्ष पाया होय तथा केवलज्ञानी के अतिशय, देव-इन्द्रन करि वन्दनीय
जानि, आपकू केवली के श ने बहन अनुसग भया होय तथा केवलज्ञानो के वचन प्रभास तीन लोक, तीन काल. | जीव-अजीवादि द्रव्य, तिनके यमःणा का स्वरूप, परोक्ष तौ जान्या होय अरु ताके प्रत्यक्ष जानवे का परम | अभिलाषी भया. वीतराग भावन की इदा सहित प्रवृत्ति करी होय इत्यादिक शुभ भावना ते अवधि-मनःपर्यय
केवलज्ञान की महिमा प्रशंसा भक्ति-भाव सहित कर, तिन उत्तम ज्ञान की प्राप्ति की दीक्षा का उद्यमी भया होय इत्यादिक शुद्ध मावना सहित जीवन कं भवान्तर में अवधि, मनःपर्यय, केवल ऐसे उत्कृष्ट ज्ञान की प्राप्ति होय है ।२०७। बहुरि शिष्य पूछी । हे गुरुजी ! इस जीव का धन, धर्म कार्यन विर्षे लागें । सो किस पुण्य का फल है ? ।। । सो कहो। तब गुरु कही--जिन जीवन ने पर-1 में औरन को धर्म विर्षे धन खर्च करते देख, अनुमोदना करि । हर्ष उपाया होय तथा आफ्ने चोरी दगाबाजी रहित, न्याय मार्ग सहित, धन उपारज्या होय। औरन कौं तीर्थ
स्थान में धन लगावते देख तथा जिन मन्दिर के करायवे में द्रव्य लगावते देख तथा पूजा-प्रतिष्ठा विर्षे धन लगावते । देख, आपने विशेष अनुमोदना करो होथ तथा प्रापने पर-भव में अनेक प्रभावना अङ्गन में द्रव्य लगाया होय