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जाने जैसा उपकार किया होय तैसा ही आपकों दूसरा भी आय सहाय करें है तथा नये सिरे तें उपकार करने की अभिलाषा होय है । १०२ । बहुरि शिष्य पूछो। है गुरुनाथ ! जाका धन रोग निमित्त बहुत लागे। परन्तु सुख नहीं होय । सो कौन पाप का फल है ? तब गुरु कही जाने पर भव विषै अनेक भोले जीवन कौं बहकाया हो और तिनकौं रोग नाश करि पुष्ट करने का लोभ देय तिनका धन छल-बल करि आप लिया होय तथा रोग नाशक लोभ देय ताका वहुत धन खराब कराया होय तथा अल्प मोल की वस्तु देय बहुत धन छलि करि लिया होय तथा अन्य कौं दुःखित- रोगी देख तिनका धन औषध निमित्त वृथा लागता देख श्रपने हर्ष मान्या होय तथा पर कौं रोग नाश करने निमित्त कुदैवादिक के निमित्त पूजा बताय ताका धन क्षय किया होय तथा कोई रोगी कौं ग्रह-नक्षत्र का भय देय तिनका धन ग्रह-दान में क्षय कराया होय इत्यादिक कुभावन हैं भवान्तर में मनुष्य होय ताका धन रोग निमित्त जाय है । १०३ । बहुरि शिष्य पूछी । हे गुरो ! इस जीव का भला धन कुव्यसन विषै लागे । सो किस पाप का फल है। सो कहो। तब गुरु कही – जानें पर भव में पराया धन कुव्यसन विषै शिक्षा देय लगवाया होय तथा धनादेखी भया होय। द्यूत रमाय पराया धन हरा होय । अभक्ष्य भक्षण कराय पर धन खोया होय तथा आपने चोरी करि पराया धन हरा होय । मदिरा प्याय धन उगा होय तथा वैश्या के नाच-गान व पर-स्त्री आदि भोगन मैं पर धन नाश होता देख आप खुशी भया होय इत्यादिक पाप तैं भवान्तर में कुव्यसन में धन नाश होय है । १०४ । बहुरि शिष्य पूछो। हे गुरो ! यह जीव गर्भ में ही कौन पाप तें नाश हो जाय ? तब गुरु कही — जिन नैं पर जीवन को पर-भव में गर्भ में ही मारे होंय अनेक वनवासी पशु तिनकूं आप निर्दयी होय, गर्भ में ही हते होंय तथा आप दाई का स्वांग धारि, अनेक स्त्रियों के बालक गर्भ में ही मारि डारे होंय तथा औषध देय तथा जन्त्र-मन्त्र करि गर्भ का निपातन किया होय तथा पर के बालक गर्भ विषै मरे सुनि आप सुखी भया होय तथा कोई तें द्वेष-भाव करि ताका बालक किसी कौं कहि के गर्भ में हो नाश कराया होय इत्यादिक पापन तैं जीव भवान्तर में गर्भ में ही मौत पायें है | २०५ | बहुरि शिष्य कही है गुरो ! इस जीव को भलो सोख बुरो क्यों लागे ? सो कहो। तब गुरु कहीजानें पर कौं अनेक खोटो सीख देय पर का बुरा करि, आप सुख पाया होय तथा पर कौं खोटी सोख देय,
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