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प्रश्न किया। हे गुरो! यह जीवन के समुदाय कं सूख किस पुण्य ते होय? तब गुरु कही—जिन जीवन में तीर्थकर के गर्भ उत्सव तथा देवन के किये जन्मोत्सव, तप उत्सव, ज्ञान उत्सव, निर्वाण उत्सव-इन पाँच || |४२६ कल्याण के बड़े उत्वस, अनेक देव सहित, इन्द्र-शची कौ करते देख तथा सुनि, जिन जोवन नैं इकट्ठे होय, अनुमोदना करी होय तथा इन्द्र महाराज इन्द्राणी सहित अनेक देव लेय, नन्दीश्वर जी के उत्सव कौं जाते देख तथा सुनि, परम सुख कं पाय, अनेक जीवन के समुदाय ने अनुमोदना करि पुण्य बांध्या होय तथा बड़ा सङ्घ सिद्धक्षेत्र को यात्रा को जाता देख. ताका जय-जयकार उत्सव देख, अनेक जीवन नै अनुमोदना करि. पुण्य बन्ध किया होय तथा च्यार प्रकार संघ को वीतरागता देख, अनेक जोवों ने सुख पाया होय तथा समोशरण की महिमा देख तथा बड़ी पूजा-विधान प्रतिष्ठा तिनके उत्सव देख तथा शास्त्रन तैं सुनि, अनेक जोक्न की अनुमोदना उपजी होय इत्यादिक शुभ कार्यन में अनुमोदना करि, बहुत जीवन नै समुच्चय पुण्य बन्ध किया होय। तिनकू समुदाय ही सुख होय है । ६६ । बहुरि शिष्य पूछो हे गुरो! बहुत जीव एक बार ही तप लेय, स्वर्ग-मोक्ष कौं सङ्ग ही जाय । सो किस पुण्य का उदय है ? सो कहो। तब गुरु कही—जिन जीवन नै पर-भव में तीर्थङ्करों को, देवोपुनीत राज्य सम्पदा छांडि तप लेते देख तथा चक्रवर्ती षट् खण्ड की विभूति तृणवत् तजि दीक्षा लय, तिस उत्सव को देख तथा बलमद्र, कामदेव, मण्डलेश्वरादि महाराजान् को दीक्षा लेते देख, हर्ष करि अनुमोदना करी होय तथा एक-एक राजा की संगति करि, अनेक राजा व तिनकी रानी, राज्य-सम्पदा छाडि, दीक्षा लेंथ। ऐसे हजारों जीवन को दीक्षा देख तथा शास्वन सुनि, बहुत भव्य जीवन नै एक बार ही तप की अभिलाषा सहित अनुनीदना करि, समुदाय सहित पुण्य का बन्ध करि, वैराग्य भाव किये होंय इत्यादिक समुदाय पुण्य से, समुदाय तप अङ्गीकार कर स्वर्ग-मोक्ष होय है।६७। बहुरि शिष्य पूछी। हे नाथ ! बहुत जीवन के एकही बार रोग होय। सो किस कम त होय? तब गुरु कही-जिन पर-भव में वीतरागी यतीश्वर का, जो अपने शरीर हो त निष्प्रयोजन हैं तिनका शरीर मलिन देख तथा तप ते क्षीण देख तथा मुनीश्वर के शरीर में दीर्घ रोग देख बहुत जीवन ने एक ही बार ग्लानि करी होय तथा निन्दा करि अनादर किया होय । तो उन बहुत जीवन के एक साथ हो रोग होय तथा कोई आर्यिका के तन में रोग देख तथा धर्मात्मा श्रावक, श्राविका अविरत
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