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पञ्च स्थावर घात करते देख, अनुमोदना करी होय इत्यादिक याप ते राकेन्द्रिय स्थावर काय होय ।२। बहुरि शिष्य पूछो। हे गुरो! यह जीव विकलत्रय में कौन पाप तें होध ? तब गुरु कही-जे जीव विकलत्रय आदि त्रस जीवन की घात करते, निर्दय रूप रहे होंय तथा तिली, गेहूँ जादि अत्र को भरडशाला (बंडा-खत्ती धरि) करि बहुत दिन राखि, अनेक त्रस जीवन का समूह उपजाय के तय किया होय। तहां दया नहीं उपजी होय तथा त्रस जोवन सहित अनेक मेवा, फल, फूल, पकवानादि अनेक रसना इन्द्रिय के वशीभूत होय मतण किये होय और दया नहीं उपजी होय तथा नर-पशुन का मूत्र इकट्ठा करि त्रस जीवन की उत्पत्ति-तय होते, दया नहीं उपजी होय इत्यादिक विकलत्रय की दया रहित वर्त होय, सो जीव विकलत्रय में होय ।१३। बहुरि शिष्य पछी। गुरु जी, यह जीव विकलांगी, अङ्गोपाङ रहित कौन पाप ते होय ? तब गुरु कही--जिन जीवन में पर-भव विष पर-जीवन के हाथ, पाव, कान, नाक, शीश, अंगुलो आदि अङ्ग-उपाङ्ग छेदन किये होंथ तथा कोई के अङ्गउपाङ्ग छेदते देख, हर्ष पाया होय तथा दीन-पशुन के अङ्ग-उपाङ्ग शस्त्रन छेदन किये होय तथा पाहन, लाठी, लात. मूकी पराधीन नर-पशुन के अङ्गोयाङ्ग तोडि डारे होय तथा अङ्गोपाङ्ग रहित जीव देख तिनको हाँसि करि, हर्ष मान्या होय इत्यादिक पायन ते विकल अङ्गी अङ्गोपाङ्ग रहित होय है। ५४। बहुरि शिष्य पूछी। हे गुरु। अष्ट अङ्ग सहित सम्पूरण. कौन पुण्य तें होय ? तब गुरु कही--जिन पर-भव वि अन्य जीवन के अङ्ग-उपाङ्ग को रक्षा करी होय तथा कोई के हाथ-पांवादिक अङ्ग-उपाङ्ग कटते राखे होंय, दया-भाव करि धन देय बचाये होंय तथा औरन के अंग-उपांग में दुःख देख, आप दया करि ओषधि देय, ताकौ साता करी होय तथा अंगोपांग रहित काऊ कौं देख, अनुकम्पा करी होय तथा औरन के अंगोपांग शुद्ध-पुष्ट देख, सुख मान्या होय इत्यादिक पुरय भावन तैं अष्ट अंग शुद्ध पावै।श बहुरि शिष्य पछी। है गुरो। यह जीव नोच कुलो किस पाय ते होय ? तब गुरु कही-जिन जीवन ने पर-भव में ऊँच कुली पुरुषों को निन्दा करी होय तथा अपने मुख तें अपनी प्रशंसा करी होय तथा पराये मले गुणन का आच्छादत किया होय तथा अपने औगुरा आच्छादन किये होंय तथा पराये दोष प्रगट करे होय तथा नीच कुलीन के खान-पान वि रायमान होय, अनुमोदना करी होय तथा अपने अभिमान करि औरत का अनादर किया होय तथा नीच सेग में बहुत रह्या होय
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