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इत्यादिक शुभ मावना तै, दीर्घ आयुधारी, जीवन पर्यन्त सुखी रहै । ७४ । बहुरि शिष्य पूछी । हे गुरो! यह जीव दीर्घ आयु पाय, दुःस्त्री किस पाप नै रहै है ? तब गुरु कहो--जिन जीवन नैं पर-भव में पर-जीवन का घात || किया होय। अनेक जलगाहन, तरु छेदन, ममि खोदन, अग्नि जालन इत्यादिक क्रिया के प्रारम्भ से अनेक जीव बस-स्थावरन का घात किया होय । अनेक छोटी काय के धारी दोन-जीवन को सताये होंय। और को दुःखी या रोगी रोवते देख खुशी भये होय। पर कौं सुखी देख, ताका बुरा करना वाच्छा होय इत्यादिक पाय-भावना ते दीर्घ आयु पाय दुःखी होय ।७५॥ बहुरि शिष्य पूछो। हे गुरुजी! ये जीव सदैव शोक रूप कौन पाप ते होंय ? तब गुरु कही-जे जीव पर-मव में पर-जीवन के शोक सहित देख, सुखी भया होय तथा पर कौ द्वेष-भाव तें भय देय, शोक उपजाया होय तथा असत्य वचन ते हाँ सि करि कही-फलानी जगह तेरा धन राह में लट्या गया। रोसा कहि शोक उपभाषा होय त्यावर सोको सिकार होय तथा पराये मङ्गलाचार में उपद्रव का होय इत्यादिक पापन तैं शोकवन्त रहै । ७६ । बहुरि शिष्य पूछो । है गुरो! यह जीव सदैव शोक रहित सुखी, किस पुण्य तें होय है ? तब गुरु कही---जिन जीवन नैं पर-भव में तीर्थङ्कर के पञ्चकल्याणक उत्सव देख, हर्ष-अनुमोदना करी होय तथा जिन-पूजा, जिन-प्रतिष्ठा, सिद्धक्षेत्र-यात्रा संघ जावता इत्यादिक उत्सव देख, बहुत हर्ष किया होय। धर्म उत्सव करनेहारे जीव को बड़ी प्रशंसा करी होय। अनेक जीवन के शोक जानें धन तें, मन तें, तन ते अनेक उपाय करि मिटाय, सुखी करै होंय तथा और जीवन को शोकवन्त देख, करुणा भाव करि तिनकौं सुख वांच्छ्या होय। पर कौं सुस्त्री-मङ्गलाचार रूप देख, सुख पाया होय इत्यादिक शुम भावना ते शोक रहित सदैव सुख रूप होय । ७७ । बहुरि शिष्य पूछी। है गुरुदेव ! यह जीव अनेक जीवन करि पूज्य, बहुतन का ईश्वर, कौन पुण्य ते होय? तब गुरु कही-जाने पर-भव मैं अनेक धर्मात्मा जीवन की वैय्यावत्य करि, साता उपजाई होथ तथा देव-गुरु-धर्म • उत्कृष्ट जानि पूजे होंय तथा औरन कौं धर्मात्मा जीवन की सेवा करते देख, तिनकी अनुमोदना करि, तिनकौं भले जाने होंय तथा पर-भव में जाने अनेक जीव असहायो-दीन की दया करि अन्न देय, धन देय तथा वस्त्रादि तें सुखी किये होंय तथा पाके च्यारि प्रकार संघ की सेवा करने की अभिलाषा रही होय इत्यादिक पुण्य भावन तें बहुत जीवन का नाथ