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अशुभ भावन ते बहत भोजन करता, तृप्त नहीं होय है।७। बहरि शिष्य पूछो। हे गुरुदेवजी! यह जोव घी | चतुराई-कलारहित मुर्ख, हृदय शून्य, लौकिक ज्ञान रहित, किस पाप ते उपजे ? तब गुरु कही-जाने पर-भव || |४१८
में पराई कला-चतुराई देख द्वेष-भाव तैं, दोष लगाय हाँ सि करी होय। अरु अपने दोष छिपाने कू अनेक मायाचतुराई करि, अपना दोष छिपाया होय। भांड-कला देख, हर्ष पाया होय। पराया गावना, खावना. हाव-भाव, नृत्य, वादिनादि-कला देख, तातै वेष-भाव किया होय। पराई चतराई प्यारी नहीं लागी होय तथा पर-भव में याके रिझावे कं, काह ने अनेक कला-चतुराई करि राजी किया, ताकी रीझ (इनाम) पचाय गया होय इत्यादिक पापन तँ मूढ़, लौकिक ज्ञान-चतुराई रहित होय है। ६८। बहुरि शिष्य पूछो। हे ज्ञानमूर्ति ! यह जीव लौकिक कला-चतुराई सहित कौन पुण्य ते होय ? तब गुरु कही-जिन जीवन नैं पर-भव में औरत को गान, नृत्य, वादिन, चित्र-कला, शिल्प-कलादि अनेक चतुराई देख, हरख पाय, तिनकं उदार चित्त सहित अनेक रीझ दई होय । पराई चतुराई. विवेक, भला-ज्ञान देख, भला लाग्या होय। तिनकी प्रशंसा करी होय, कहो कि याकी ज्ञान-कला, शास्त्र प्रमाण है। गुणी जन का आदर किया होय इत्यादिक अपनी सजनता प्रगट करि, औरन के सुखो करने के निमित्त भला-ज्ञान खर्च किया होय । सो जीव लौकिक कला-चतुराई में प्रवीण होय।६६। बहुरि शिष्य प्रश्न किया। है गुरो! यह जीव बहुभार का बहनेहारा मनुष्य-पशु, किस पाप होय है ? तब गुरु कही-जिन नैं पर-जीवन पै बहुत भार लादा होय तथा बेगारि पकड़, ताप बराजोरि भार धरया होय तथा पशुन पें बहुत भार देय चलाये होय तथा अल्प भार का नाम लेय, बहुत भार बांध-धरा होय तथा अपने लोभकौं, पर-जीवन पै भार लादि कुटम्ब की रक्षा करी होय तथा पर पै दीर्घ भार लदा देख हर्ष पाया होय इत्यादिक भावन के अशुभ फल तैं बहुत भार का बहनेहारा होय है। तिर्यंच में वृषभ, महिष, ऊँट, गर्धवादि बहुत भार बहनेहारा होय। मनुष्यन में बहुत भार बहनेहारा हम्माल व बैगारी होय । ७०। बहुरि शिष्य पूछो। हे नाथ ! यह जीव रत दरिद्री किस पाप तें होय ? तब गुरु कही—जिन पर-मव में अपनी अन्याय बुद्धि तें जोरी करि ।। । अनेक जीवन कौ दुःखी करि धन खसि निर्धन-दरिद्री करे होय तथा पर-जीवन को लटे-खुसे देख हर्ष मान्या होय तया कोई रङ्क का जोड्या अल्प धन सो पर-भव में चोरचा होय तथा कोई दीन-दुःखी जीवन कूदुर्वचन