________________
मध्यन मुनि-दान देते देख अनुमोदना करी होय तथा भुनीश्वरों को दान देने की अभिलाषा रही होय तथा मुनि-दान समय देवन के पश्चाश्चर्य होते देख तथा सुनि के मुनि के दान की महिमा बड़ाई करी होय तथा मुनि-दान देनेहारे दाता की स्तुति करो होय इत्यादि शुभ भावन तै उत्कृष्ट भोग-भूमियां होय है ।६३। बहुरि शिष्य पूछो। हे गुरो ! कुक्षेत्र का वास किस पाप-कर्म से होय ? तब गुरु कही-जिन जीवन नैं पर-भव विर्षे पर-जीवनक झटायो लगाय नवन तें निकासि उनार में साग तथा म्लेच्छन के भोग भले लागे होय तथा कोई पै कोप करि ताहि पकड़ निर्जन-मयावने स्थान में राखा होय तथा कुक्षेत्र में वास करनेहारे, अनाचारी जीवन को प्रशंसा करी होध तथा पशु-पालक होय, उद्यान में रहके, हर्ष पाया होय इत्यादिक कुचेष्टा तें, कुक्षेत्र का वास पावै । ६४ । बहुरि शिष्य पूछो। हे ज्ञाननेत्र, सुक्षेत्र का वासी जीव किस पुण्य तें होय ? सौ कही। तब गुरु कही.. जाने पर-भव में कुक्षेत्रवासी जीवन को दया करि सुक्षेत्र में बसाया होय तथा दीन-दुःखिता जोवन के उद्यान में से ल्याय, सुख में राखा होय, तिनकौं साता उपजाई होय तथा अपने राज्य-भोग होड़, तप लेप बन में रहने का उद्यम किया होय तथा वनवासी मुनीश्वरों की धीरजता देखि, प्रशंसा करी होथ इत्यादिक शुभ भावन तें, सुक्षेत्र का वास पावै । ६५ । बहुरि शिष्य प्रश्न किया। हे नाथ ! यह जीव अल्प आहार में सन्तीको किस पुण्य तें होय ? तब गुरु कही—जिन पर-भव में मुनीश्वरों कों अल्प दान राक-दोय नारा देय, अपना भव सफल मान्या होय और दीन-भखे जीवन कूवान्छित भोजन देय, तृप्त किया होथ तथा एर-भव में अनेक वांच्छित भोग थे तिनकों छांडि, उदास होय, अल्प भोजन राखा होय । अनेक सुभग रस का त्याग किया होय इत्यादिक समता-भाव के फल ते अल्प भोजन में तृप्त होय है।६६। बहुरि शिष्य घो। हे पूज्य ! ये जीव बहुत भोजन करने की इच्छा रासे, अरु मिल नहीं। सो यह कौन कर्म का उदय है ? सा कही । तर गुरु कही—जिनने पर-भव में अन्य जीवन को तरसाय, भोजन दिया होय तथा पर-4 में मनुष्य, श्वान, मार्जारादि को पर्याय मैं पराया भोजन, ले भाज्या होय तथा धर्मात्मा जीवन का अल्प भोजन देख, हाँसि करी होय तथा पशु-हस्ती, घोटक, बैल, महिष आदि अनेक जीवन का बहुत भोजन देख, सुख मान्या होय तथा पर-भव में रात्रि दिन मुख तें भोजन करता भी, तृप्त नहीं भया होय इत्यादिक
५३
४१७