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का दान दिया होय तथा श्रावकन कौं तथा आर्यिका कौं वस्त्र दान दिये होंय तथा जिनदेव कू छत्र, चमर, । सिंहासन आदि उपकरण कराश हमे पुराय पाया होश तथा पर-जीवन के वस्त्र भूषण पहरे देख आप हर्ष मान्या थो, होय तथा जिनने सर्व जीवन • सर्व प्रकार सुख वांच्छया होय इत्यादिक शुभ भाव सहित होय तौ अनेक उप।। भोगन का भोगनहारा होय। ५५ । बहुरि शिष्य पूछी। हे नाथ! ये जीव बावने शरीर का धारी कौन कर्म ते
उपजै है ? तब गुरु कही-जाने पर-भवमैं परकू छोटे शरीर का धारक देख, तिनको हाँसि, निन्दा करी होय तथा आप बड़े तन का धारक होय, अभिमान किया होय। पर का बावना शरीर देखि आप हर्ष पाय मला जान्या होय । अपने बड़े तनत अन्य छोटे शरीरवालों की पीड़ा पहुंचाई होय इत्यादिक अशुभ भावन तैं छोटे शरीर का धारी बावना होय है ।५६। बहुरि शिष्य पूछो । हे मुनिनाथ ! इस जीवकू कूबड़ा शरीर किस पाप भावन तें होय ? तब गुरु कही-हे दयालु चित्त के धारनहारे वत्स ! तूचित देय सुनि । जिन जीवन नै पर-भव में पर-जीवन कौं लाठी, लात, मूकी मारि ताके हाड़ तोड़ तिनकू दुःखी करि जाप सुख पाया होय तथा पराये शरीरकगांठ-गठीला रोग-सहित देख आप सुखी भया होय तथा औरन का शरीर का बांका कुम्प देख हाँसि करो होय । अपने मले तन का भारी गर्व कर औरनकों बहकार होय इत्यादिक अशुभ भावन तें कूबड़ा शरीर होय है ।५७। बहुरि शिष्य पूछी । हे गुरो ! ये जीव देव किस पुण्य ते होय ? तब गुरु कही-जिन जीवन नैं पर-भव में सम्यक धारा होय तथा पञ्च-परमेष्ठी की पूजा, वन्दना, स्तुति करी होय तथा तप, शील, संयम पाले होय तथा दीन जीवन की रक्षा रूप भाव करि करुणा भाव धारे होय तथा मुनि श्रावकादिक च्यारि संघ का वैय्यानत करन्या होय तथा मले भाव सहित जिनवाणी सुनी होय इत्यादिक धर्म का सेवन कर चा होय तथा औरनकों धर्म सेवते देख अनुमोदना करी होय तथा नन्दीवर द्वीप, कुपडलगिरि, रुचिकगिरि आदिक क्षेत्रन के जिन-मन्दिरों को वन्दना को अभिलाषा राखी होय इत्यादिक धर्म भावन ते देव होय है ।५५। बहुरि शिष्य पूछी । हे गुरो! मनुष्य किस भाव तें होय ? तब गुरु कही—जिनने पर-भव में सरल भाव राखे होंय । कोई जोवन ते द्वेष-भाव नहीं किये होंय । मन्द कषाय धरै, धर्म भाव सहित आर्जव परिणामी रह्या होय इत्यादिक शुभ भावनतें मनुष्य होय ।५। बहुरि शिष्य पूछो। हे करुणानिधाम 1
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