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पर्याय छुटो होय इत्यादिक पाप मावन ते भाई-भाई, शत् समानि होय। ४५। बहुरि शिष्य प्रश्न किया। हे गुरु । भाई-भाई में परस्पर स्नेह कौन पुण्य ते होय ? तब गुरु कही—जिसने पर-भव में और के दोय माईन में स्नेह देख, सुख मान्या होय तथा दोयन को लड़ते देख, आपने सज्जनता करि समझाय, दोयन को राड़ि (लड़ाई) मिटाय, स्नेह करा दिया होय इत्यादिक भले भावतें, भाईनमैं परस्पर स्नेह पावै।४६। बहुरि शिष्य प्रश्न किया। | हे ज्ञानवान ! माता-गुन में देष कौन प त होय ? तब गुरु कही-जो पर-भव में पर के माता-पुत्र तिनमें स्नेह नहीं देख सक्या होय। पर के माता-पुत्रन की लड़ाय सुख मान्या होय। माता-पुत्र लड़ते देख, खुसी भया होय इत्यादिक द्वेष भावन तैं माता-पुत्र मैं द्वेष होय । ४७ । बहुरि शिष्य पूछी। हे करुणानिधान ! माता-पितान के पुत्र का वियोग किस पाप तें होय ? तब गुरु कहो-जिसने पर-भव में पशु-पवरुन के बच्चनकू पकड़ि, माता-पिताते उनका वियोग किया होय तथा जो पराया पुत्र चोरी तें तथा जोरो ते पकड़ ले गया होय तथा काहू का पुत्र भला देख, ताकौं शस्त्र तें तथा विषादि से मार, वियोग करचा होय तथा किसी के पुत्र का वियोग देख, आप सुशी भया होय तथा किसी का पुत्र-वियोग, वांच्छया होय इत्यादिक पायनतें माता-पितान के, पुत्र वियोग होय ।४पा बहुरि शिष्य कही-हे दयानिधान! पुत्र का वियोग न होय सो कौन पुण्य ते? सो कहो। तब गुरु कहीजाने पर-भव में परके पुत्र का वियोग सुनि दया-भाव करि, वाक पुत्र का मिलाप वच्छिचा होय तथा कार का गया पुत्र बहुत दिन वि मिलाप भया सुनि-देख, आप सुखी भया होय तथा किसी का पुत्र कोई दुष्ट बन्दी में ले गया सुनि, ताकौ धन देय तथा जोरो से छुड़ाय, जाका पुत्र वाकौं दिवाया होय तथा कोई पशु का पुत्र बिछुड्या देख, ताकी दया करि, तलाश करि लाय, ताके पुत्र का संयोग कराय दिया होय तथा कोईको ही, पुत्र का वियोग नहीं वांच्छया होय इत्यादिक पुण्य-भावनतें पुत्र न बिछुड़े का लाभ होय 188। बहुरि शिष्य पूछी। हे जगत गुरो पिता-पुत्र के निमित्त अनेक कष्ट पाय पुत्र की उत्पत्तिको चाहै । सो ऐसे पिता-पुत्र में परस्पर द्वेष कौन पाप तें होय? तब गुरु कही-जिनने पर-भव में पराये पिता-पुत्र मैं द्वेष कराया होय तथा तिनको लड़ते देख भाप सुखी भया होय तथा और के पिता-पुत्र में स्नेह देख आपकू नहीं सुहाया होय तथा और के पुत्र-पिता में द्वेष कराय दिया होय तथा कोई के पुत्र-पिता में देष चाहा होय इत्यादिक अशुभ भावनतें पिता-पुत्र में द्वेष होय 1 ५०॥