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अभक्ष्य वस्तु तो रसना तैं बहुत भली लागी होय तथा मुख करि अन्य जीवनको कोप करि इवानादिक को नाई काटे हों तथा और कूं मूंका देखि तिनकी हाँसि करि बकाये होंय तथा अन्य जीवनकूं प्रच्छन्न वचन, जानें वह नहीं समझे ऐसे वचन बोलि, दुर्वचन कहि कैं हर्ष मान्या होय इत्यादिक पापनतें मूंका होय है । ४ तब फेरि शिष्य प्रश्न करता भया । हे नाथ! यह जीव निर्धन कौन पाप तैं होय ? तब गुरु कहोमो वत्स ! जिननैं परभव में अन्य जीवन का धन चोर कौर, उन्हें निधने किया होय तथा पर को झूठा दोष लगाय, आपने जबरी हैं ताका धन लूट, अन्य कौं निर्धन किया होय तथा पर को भय देय, दुःख देय ताका धन छोन लिया होय तथा धन जोड़ने कौं अनेक स्वाङ्ग धरि, पराया धन ठगा होय। ऐसे अपराधी जीव, निर्धन होय हैं तथा परकौं धनवान् न देख सक्या होय । पर के घर में धन देखि, आप दुःखी भया होय तथा परकौं धनवान् देखि ताके धन खोवने कूं अनेक चुगली राज-पश्चन में करि ताका धन नाश कराय, निर्धन किया होय तथा अन्यकूं धन की पैदायश कोई कार्य में जानी, ता कार्य का घात किया होय इत्यादिक पाप-भावन तैं प्राणी भवान्तर में निर्धन होय तथा निर्धन होने के अनेक भेद है। जिनने पराया धन अग्रि में जलता देखि हर्ष पाया होय तथा अपने पराये धन कौं अनि लगाय, निर्धन किया होय तो तिस पाय हैं अपना धन अग्नि में जल आप निर्धन होय तथा पर धन जल में डूबता देख सुनि हर्ष पाया होय तथा अपनी दगाबाजी तें नदी-सरोवर में पराया धन डुबां परकों निर्धन किया होय । तिस पाप तैं भवान्तर में आपका धन नदी-सरोवर में जहाज डूबे, नाव वै। ऐसे आप निर्धन होय तथा औरन के घर नगर लुटे सुनिदेखि, आप सुखो भया होय तो आप भी तार्के फल तें फौजनिस लुटि, निर्धन होय तथा पर का धन, आपने जबरन लूटया होय तथा पर का धन बोरन तें लुटता देखि तथा सुनि, आप हर्ष मान्या होय । तार्के पाप तैं भवान्तर में आपका धन वोरन तें लुटि, आप निर्धन होय इत्यादिक निर्धन होने के अनेक भेद हैं। जा जा परिणामन त परकों निर्धन वांच्छ या होय तथा जा-जा प्रकार पर कूं निर्धन भये देखि, आप खुशी भया होय। तिस ही निमित्त पाथ, आप निर्धन होय । ५ । बहुरि शिग्य प्रश्न किया। भो गुरुनाथ ! यह जीव धनवान कौन पुण्य तैं होय ? तब गणधर ने कही है भव्यात्मा! जिन जीवन नै निर्धन पुरुष को दया करि, तिनको दान देय धनवान् करि. सुखो किये होंय तथा निर्धन जीव देखि, तिनको दया करि धनवान होना वच्छा
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