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होय तथा पर-जीवन के धन प्राप्ति भई सुनि आप सुखी भया होय इत्यादिकशुभ भावना है, जाप धनवान् होय । ६ । पीछे फेरि शिष्य प्रश्न किया। भी गुरुदेव ! यह जीव, पुत्र रहित कौन पाप तैं होय ? तब गुरु कहो — जो जीव पर भव में पर के पुत्र नहीं देख सकच्चा होय। पर जीवन कूं पुत्र को प्राप्ति भई सुनि, ४०१ आपने दुःख पाया होय । पर के पुत्र का मरण सुनि, आप सुखी भया होय तथा पर-पुत्र देखि, हरचा चाड्या होय इत्यादिक पापन तैं जोव, पुत्र रहित होय। ७ । पोछे फेरि शिष्य प्रश्न किया। नाथ ! यह जीव कौन पुण्य तैं पुत्र सहित होय है ? तब गुरु कही है वत्स ! जिन जोवन नैं भवान्तर में पर-जीवन क, पुत्र सहित देखि सुख मान्या होय तथा परकौं पुत्र की प्राप्ति सुनि, हर्ष पाया होय तथा परकौं पुत्र रहित जातध्यानी- दुःखी पुत्र का अभिलाषी देखि, ताकी दया भाव करि ताक पुत्र होना वांच्छा होय इत्यादिक पुण्यर्ते पुत्र सहित होय । ८ । पोछे फेरि शिष्य प्रश्न किया— हे नाथ! यह जीव कूं कुपूत पुत्र का संयोग, कौन पाप होय ? तब गुरु कही हे वत्स ! जिन पर - पुत्रकं बहकायवे में सहायता दी होय, उसे पाप-कार्यन मैं लगाय, अनेक कुबुद्धि सिखाय, माता-पिता का अविनय किया होय । तार्कों अनेक कुमार्ग लगाय, मातापितात युद्ध कराया होय । पुत्र के पास माता-पिता की निन्दा करी होय तथा परका सुपूत पुत्र देखि, ताकौ नहीं सुहाये होंय तथा पर के पुत्र चोर, ज्वारी, कुशील आदि विशेष व्यसनी देख, आप हर्षवन्त भये होय । पर कूं अनावारी देखि, सुख पाया होय इत्यादिक अशुभ भावन हैं, कुपूत पुत्र का संयोग होय है | पीछे फेरि शिष्य प्रश्न करता भया । है जगत्पति ! सुपूत पुत्र का लाभ कौन पुण्य होय ? तब गणधर ने कहीजिन जीवन नै पराये कुपूत कुमार्गी पुत्रन कौं अनेक शिक्षा देय, सुमार्ग लगाये होंय । अनेक नय-युक्ति करि, तिनकूं सुबुद्धि उपजाय, माता-पितान की आज्ञा में किये होंय पर के सुपूत पुत्र देख आपकूं सुख उपज्या होय । पर के सुपूत पुत्रन के शुभ लक्षण देखि, तिनकी प्रशंसा करी होय । पुत्रकूं माता-पिता सु विनयवान् देखि, आप हर्ष पाया होय इत्यादिक शुभ भावना तैं, सुपूत पुत्र का लाभ होय है । १० । पोछे फेरि शिष्य प्रश्न करता भया । हे नाथ! खोटी स्त्री, कौन पाप तैं पावै, सो कहौं। तब गुरु कही हे वत्स | जे जीव पर के घर में खोटी स्त्री - कलहकारिणी देखि सुखी भये होंय तथा पर- स्त्री भर्तार में माया करि, कालह
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