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के फल तें मवान्सर में संयम-सम्पदा पाये और जिननं पर-भव में और जीवन को सिद्धक्षेत्र-यात्रा क गमन करते देख तथा सिद्धक्षेत्र वन्दना के निमित संघ जाते देखि ताकी अनुमोदना करी होय तथा सिद्धक्षेत्र-यात्रा करने की अभिलाषा रहो होय तथा सिद्धक्षेत्र-यात्रा करनेवालों को सहायता करि साता उपजाय सुखो किये होंथ इत्यादिक । पुण्य भावन ते भवान्तर में सिद्धक्षेत्र-यात्रा का बहुत लाभ होय। पर-भव में आचार्यन कौँ उपदेश देता देव तिन धर्मो पुरुषन का उपदेश सुनि तिनके ज्ञान की शान्ति-भावना की प्रशंसा को होय । धर्म के उपदेश दाता की भक्ति करि आनन्द मान्या होय इत्यादिक भावन तें धर्मोपदेश देने का उत्तम ज्ञान पाय अपना तथा पर-जीवन का कल्याण करे है। ऐसे धर्म-अङ्गन के अनेक मैद हैं। सो जा-जा धर्म-अङ्ग का सहाथ किया होय अनुमोदना करी होय ताही धर्म-अङ्ग का लाभ होय। धर्म का फल उपजावै। २२ । बहुरि शिण्य प्रश्न करता भया। हे नाथ! यह जीव बलवान कौन पुण्य तें होय ? तब गुरु कही-हे भव्य । जिन जीवन में पर-भव विर्षे दीन-जीवन की दया करि रक्षा करी होय तथा अशक्त-जीवनकौं देखि तिन में दया-भाव करि तिनके दुःख मैट सुनी करवेकौं अनेक उपाय करि रक्षा करी होय। निर्बल जीवनकौं भलै भोजन पान देय दया-भाव करि सुखी किये होय । नंगेन के वस्त्र, रोगोनको औषधि देय पुष्ट किये होय । औरनों अनेक साता उपजाय रक्षा करी होय इत्यादिक शुभ भावनतें जीव भवान्तर विर्षे बलवान् होय । २३ । बहुरि शिष्य प्रश्न किया ! हे नाथ ! हे यति पति ! यह जीव निर्बल कौन पाप तें होय ? तब गुरु कही-है वत्स! जिन जीवन ने पर-जीवन का खान-पान बन्द करि निर्बल करिडारे होय तथा दीन जीव बल रहित देव तिनकी हाँ सि करि तिनकौं लज्जावान किये होय तथा बल रहित जीवनकौं मारे होंय, बांधे होय, लटकार होय। आपकों बलवान् जानि अपने बल-मद आगे औरनको बल रहित जानि अनेक भय उपजाय दुःखी किये होंय तथा अपने बल मद के प्रागे सिंह-हस्तो की नाई मदोन्मत्त वा होय । अन्य जीवन का बल देख आपने द्वेष-भाव किया होय इत्यादिक पाप भावनत बल रहित होय है । २४। फेरि शिष्य पूछी। हे नाथ! यह जीव भयवान् कायर चित्त का धारी कौन पाप तें होंय ? तब गुरु कहीहे भव्यात्मा ! सुनि, जिन जोबनने पर-जीवनकौं अनेक भय उपजाये होय। प्रारा नाश का भय देय कम्पायमान करे होय। धन नाश का भय दिया होय । घर लुटने का भय दिया होय तथा ताकी आबरू-खंडवे का भय दिया