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नाम सिंह है। काष्ठ पाषास चिन्नाम का नाहर का आकार बनाया, सो स्थापना सिंह है। नाहर की पर्याय में उपजर्व क्सन्मुख भया जो जीव सो तौ अन्तराल में है, सो द्रव्य नाहर है। साक्षात् कूदता, फांदता, बोलता सिंह सो भाव सिंह है। इत्यादिक भेद सब जगह चेतन-अचेतन पदार्थन पै लगावना । इन च्यारों के मारै पाप होय व इन पे दया-भाव किये पुण्य होय । मिट्टी के स्थापना-नाहर के फोड़े मारै का दोष लागे हैं। यहां निक्षेपन का स्वरूप सामान्य कह्या। विशेष विवेकी सम्यग्दृष्टि अपने ज्ञान के माहात्म्य करि सब स्थान यथायोग्य लगाय लेना। इति ।
आगे अलौकिक मान के भारि भेद ३ . सोचता है। प्रथम नानस्य मान, क्षेत्र मान, काल मान और भाव मान अब इनका अर्थ--सो इन च्यारों मान विष जघन्य मध्यम उत्कृष्ट ये तीन-तीन भेद हैं। तहाँ मान नाम प्रमाण का है। सो जो एक पुद्गल परमाणु है सो जघन्य द्रव्य मान है । यातें छोटा द्रव्य और नाहीं। महास्कन्ध तीन लोक के प्रमाण, सो उत्कृष्ट द्रव्ध मान जानना । या महास्कन्ध ते बड़ा और पुद्गल स्कन्ध नाहीं। तातें महास्कन्ध उत्कृष्ट द्रव्य मान जानना । पुद्गल परमाणु से ऊपर, महास्कन्ध से एक पुद्गल परमाणु कम जो बीच के भेद हैं सो मध्यम द्रव्य मान है। और एक प्रदेश आकाश का क्षेत्र, सो जघन्य क्षेत्र मान है। यात छोटा क्षेत्र नहीं और तीन लोक क्षेत्र प्रमाण क्षेत्र सो लोकाकाश को अपैता उत्कृष्ट क्षेत्र मान है और अनन्त अलोकाकाश क्षेत्र है सो उत्कृष्ट क्षेत्र मान है । या अलोकाकाश तें उत्कृष्ट क्षेत्र नाहीं
और एक प्रदेश के ऊपर तें एक-एक प्रदेश बढ़ता उत्कृष्ट पर्यन्त मध्य के भेद हैं। ये क्षेत्रमान के तीन भेद हैं। २। और एक समय ते छोटा काल-भेद नाहीं। तातें एक समय तो जघन्य काल मान है और अतीत, अनागत, वर्तमान–ए तीन काल के जेते समयन का प्रमाण सो उत्कृष्ट काल मान है और दूसरे समय तें एक-एक समय काल बढ़ता सो उत्कृष्ट तें एक समय घाटि पर्यन्त मध्य के भेद हैं। ऐसे काल-मान के तीन भेद कहे ।३। और सूक्ष्म निगोदिया लब्धि अपर्याप्तक जीव एक अन्तमुहर्त में व्यासठ हजार तीन सौ छत्तीस जन्म-मरण करै। सो तिनमें छः हजार ग्यारह जन्म-मरस निगोदिया सम्बन्धी करि चुक्या होय । बरु बारहवें जन्म धर , प्रथम समय में अक्षर के अनन्तवें भाग ज्ञान रहै है । सो जघन्य ज्ञान है । सो ही जघन्य
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