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अघकरणी क्रिया कहिये है-तहां जाकी हिंसा के उपकरण, बहुत बल्लभ (प्यारे) लागें। तीर, तलवार, तुपक, तोप, सेल, बरछी, कटारी, छुरी इत्यादिक अचेतन, हिंसा के उपकरण हैं। सो ये जा कू बहुत अनुराग उपजा। तिनके निमित्त श्रङ्गारवेकौं अनेक द्रव्य लगाय आभषण करावे तथा चीता, बाज, श्वान, सिंह, सुअर, मारि, चोर, ऐंठा देनेहारे घर फोड़नेहारे, ठग, फांसी करनहारे इत्यादिक ये चेतन, हिंसा के उपकरण जाकौं प्यारे लागें इनको भला भोजन देय। बडे भारी वस्त्र देय इत्यादिक चेतन-अचेतन हिंसा के पाप के सहाई उपकरश तिनको दैगित एष गाल पला, सो आसव के करनहारे भाव जानना। थाका नाम आठवीं अघकरणी क्रिया है।८। प्रागे परितापि की क्रिया कहिये है। तहां अपनी इच्छा करि जान-बझ पूछ करि ऐसो क्रिया करै जाकरि पर-जीवन कं पीड़ा होय । जैसे—काह ने कौतुक हेतु हस्ती का युद्ध कराया। मीठेन का युद्ध कराया। कर जीव नाहर का युद्ध किया सर्प नेवले को युद्ध किया घोटक युद्ध, महिष युद्ध, ऊँट युद्ध, नर युद्ध इत्यादिक युद्ध क्रिया अन्य जीवन की करावनी। तिन से कोई के शिर फूट। केई के पद मामये इत्यादि अन्य जीवनकू बलात्कार दुःखो करि आप हर्ष पावना । सो परितापि की क्रिया, अशुभ भासव की करनहारी है तथा नदी, कूप, बावड़ी, सरोवर विर्ष, कौतुक हर्ष के हेतु कूदना ताकरि दीन जीव जलचर, तिनका घात करना, दुःखो करना। जान-बूम-पूंछ काहू के लात, मूकी, लाठी, शस्त्र मार दुःखी किरा इत्यादि क्रिया करि अशुभकर्मन का आसब करना, याका नाम नववीं पारितापि को क्रिया है। आगे प्रारतिपाति की क्रिया कहिये है। तहां जो जीव अपने तनते पर-जीवन के तन का नाश करें। जैसे—खेटक करनेवाले की क्रिया तथा चाण्डालादिक दया रहित, पर-जीवन का घात करनहारे तिनको क्रिया तथा चोर व फैसियारा अपने हाथ से पर-जीवन का घात करें, सो क्रिया इत्यादिक पर-जीव घातवे की क्रिया हैं। सो सर्व पाय का आस्रव करें हैं। याका नाम प्रागतिपाति को दशवों किया है। २०। आगे दर्शन क्रिया कहिये है जहां पराया भला रूप देसर्व को इच्छा, कोई स्त्री-पुरुष का अच्छा रूप सूने, तौ ताके देखवे की अभिलाषा होने की क्रिया 1 पुरुषकौ अनेक पट-आभूषण पहराय, स्त्री का रूप आकार बनाय, देखवे के परिणाम। कोई देव. देवी, मनुष्यनी के रूप का बखान सुनि के, तैसे रूप देखवे क चित्त का विह्वल होना तथा अनेक प्रकार षट्स भोगवे की अभिलाषा।
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