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जानना। ५। सरल भाव ते कुटिलाई तजिक विनय त सेवा कर सो मला सेवक है। सोही मित्र कुटुम्बादि। जानना।६। और शरीर में कमाने की शक्ति घटै। कुटुम्बादिक सर्व रक्षा करने की शक्ति घटै। तन अति ही। पराधीन होय। वचन बोलते मुखत नीर चलै। अंग उपांग कम्पन लागें। इत्यादिक अवस्था जरा आए होय || तरुणयना जाय तब कोई विनय सहित सेवा करै सो तो सेवक और या दशा में आदर सहित सेवा चाकरी करें आज्ञा मानै सोही मला पुत्र, भाई, स्त्री आदिक कुटुम्बी मित्र जानना ।७। उदय से उठतें बैठत मल-मूत्र खेपन शरीर की शक्ति घट गई होय, ता समय अशक्त भरा पीछे सेवा चाकरी करै सोही मित्र, कुटुम्बादि जानना पाजा समय पंचेन्द्रियाँ शिथिल होंय तथा एक दोय इन्द्रिय की प्रवृति जाती रहै। नेत्रनतें नाहीं सूझे नहीं दोखे तथा काननत नहीं सुनै। इस समय में जो कोई, विनय सहित आज्ञा प्रमाण सेवा करै, सोही मित्र, सोही सेवक, सोही स्वी-पुत्रादि, सांचे जानना हा रोसे कहे जे सेवक, मित्र, पुत्र, स्त्री, भाई, माता-पितादि, स्नेही सोही भये कञ्चन, तिन सबके परखिने कों ये नव स्थान कसौटी समानि हैं। जैसे—कसौटी घिसे, भले-बुरे कञ्चन की परीक्षा होय, तेसे ही इन नव स्थानकन मैं मित्र, सजन, कुटुम्बादिक की परीक्षा होय है। बाकी भले विौं तो अनेक चाकरी करें हैं। कुटुम्ब, पुत्र, स्त्री आदि आज्ञा माने हो मान। क्योंकि ये तो सर्व का रक्षक है। परन्तु उक्त नव स्थानकन का अवसर आय पडे, तब चाकरी करे, सोही सांचा नाता जानना ७०1 आगे ऊपर कहे जे कसौटी समानि सर्व स्थान, इन कौन-कौन कौं परखिये, सो कहैं हैंगाथा-रणव ठाण कसौटी, पोय तीय मित्तादि पुत्त सजणाणी । सञ्जय तव धम्म कणका, घसि पखगाय पमाण सुविही ॥७॥
अर्थ--ये उक्त नव स्थान, कसौटी समानि हैं। अरु पिया, स्त्री, मित्रादि, पुत्र और अनेक सज्जन और सञ्जय कहिये संयम, तव कहिये तप, धम्म कहिये धर्म, रा सब कहिये सर्व ही, स्वर्ग समानि हैं। घसि पक्षण्य पमारा सुदिट्ठी कहिये, नय-प्रमाण इनकू घसि के शद्ध दृष्टि होय, सो परखै । भावार्थ-ऊपरि गाथा मैं कहे नव भय-राज भय, रोग भय, दरिद्ध भय, भोजन नहीं भये, असत्कार भये, सरल भाव भये, वृद्ध मये, तन अशक्त भये, इन्द्रिय बलहीन भये, ए नव स्थान कसौटी समानि जानना। सो इन कारण पड़े तब धर्मकर्म सम्बन्धों जो पदार्थ तेई भये कनक, तिनकों परखिये 1 स्त्री तो भरतार कं, इन कारणन में परखै और
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