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। है । सो जब ताई नाहर का शब्द वन में नहीं मया तब ताई वह मोढ़ा फूल्या-फूल्या वन मैं फिरे है और जब सिंह। की गर्जना का शब्द भया तब ताकू सुनि के मोढ़ादि सर्व भेड़-बकरी भय कर कम्पायमान होय खान-पान को सुधि भूलि जोय हैं। जीवन का सन्देह करें। ऐसे हो तुम जानों। जब ताई रामबली के धनुष की टङ्कार नहीं भई तब ताई रावण रूपी मीना नभचर रूपी भेड़न में मानो भया है। जब हमारा सिंह समानि शब्द भया तब रावण मोढ़ा • सैन्या रूपी भैड़न सहित जीवना कठिन जानौ। अहो खगाधीश हो। चोर का पराक्रम कहा? रावण चोर है। अन्याय पथ का धारी है। जो राजा होय अन्याय करे। तो ताका पराक्रम नष्ट होय । तुम मति डरो तुम्हारा चित्त भयरूप भया होय। तो तुम जाय अपने घर कुटुम्ब मैं तिष्ठौ। हम तो न्याय पे युद्ध करें है। सो सांचे होयगे तो दोऊ भाई जीतेंगे। ऐसी कहि रावण ते युद्ध किया। सो अपनी न्याय रूपी सैन्या के बल कर दोऊ भाई रावण कूमारि सर्व सैन्या सहित जोत्या। ताकरि पृथ्वी मण्डल में यश प्रगट होय पवन को नगई भ्रमता भया। सो यो तो सत्य-मार्ग की महिमा जानी और रावण अर्द्ध चक्रवर्ती महाबलवान बड़ी सैन्या का धारी था। सो भी अन्याय के जोगते यूद्ध हारा। अन्याय के योगतै, दोय पुरुषन ते भंग पाय मारथा परया। सो ए अन्याय का फल है सो न्याय का फल रामचन्द्र फू अरु अन्याय का फल रावणकू मिल्या। ऐसा जानि अन्याय-मार्ग तजि न्याय-मार्ग रुप परिणमन करना योग्य है । ७६ । भागे अनेक सङ्कटन विर्षे पूर्व-पुण्य जीवा सहाय है। ऐसा कहैं हैंगाथा--रण पण अरि जल ज्वाला, सायर सखरेय सैण पम्मत्ते । मग गम हय असवारो, एको संणाय पुष पुष्णाए । ८०॥
अर्थ-रश कहिये, युद्ध में। वरा कहिये, वन में। अरि कहिये, वैरोते। जल कहिये, नीरत। ज्वाला कहिये, अगनि तें। सायर कहिये, समुद्र तै। सखरेय कहिये, पर्वत तें। सैण कहिये, सौवने में। पामत्ते कहिये, प्रमाद समय। मग कहिये, मार्ग जाते। गज हय असवारो कहिये, हाथी-घोड़ा की असवारी समय । एको संगाय पुठ्य पुराणाए कहिये, इन कहे ऊपरले स्थानकनमें एक पूरव भव का किया पुरथही सहाय जानना । भावार्थजब प्राणी युद्धकों जाय है। तब शरीर पे रक्षाकं बखतर टोप पाखर झिलमिल (वस्व विशेष) पेटी दाल बनेक वस्तु अपने तन की रक्षा कू राखे है और ऐसा विचारता जाय है। जो पराये तोर गोलो आवेगी तो बखतर
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