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जानना । सो अशुम भावन के वेग कू पहिचान, तजना योग्य है। ऐसे भेद ज्ञानी जड़-भाव तजि चैतन्य के विकल्प
जानि अशुभता तजि, शुभभाव रूप रहना विचार हैं। इति षट् लेझ्या। आगे नव भेद योनि कथन| गाथा-संवत सोत सचितो, मिस्सो सेताण जोणि णब श्रेयो। संखम कुम्मो वंसय, तोए गम्मो समुच्छ उववादो॥ ११६॥
अर्थ--संवत्त कहिये, संवत । सोत कहिये, शीत। सचितो कहिये, सचित्त। मिस्सो कहिये, मिश्र। सेतारण कहिये, इन तीनन की प्रतिपक्षी। जोणि राव मेतो कहिये. इस प्रकार योनि के नव भेद हैं। संखय कहिये, शंखा योनि। कुम्भो कहिये, कम योनि। वंशय कहिये, वंशा योनि । तोए गम्भो कहिये, ए तीन भेद गरमज के हैं। समुच्छ कहिये और सम्मूर्छन योनि । उववादो कहिये तथा उपपाद योनि । ऐसे योनि भेद कहे । सो प्रथम गर्भज के तीन भेद कहिए हैं शंखा योनि, वंशा योनि, कूर्म योनि–ए तीन गर्भज के और नव भैद ऊपर कहे और सम्मान उपपाद सो इन सबका स्वरूप सामान्य-सा कहिरा है तहाँ तीन भेद गरमज के हैं। सो तिन योनि में कौन-कौन उपजें ? सो कहिय है। तहाँ जा स्त्री की शंखावर्त नाम शंख के आकार योनि होय तामै पुरुष का वीर्य नहीं। ठहरे। सो स्त्री जग में बन्ध्या कहावै ।। वंशपत्र योनि जा स्त्री की होय तामैं सामान्य पुरुष उपजें। पदवी धारक तीर्थङ्करादि महान पुरुष नहीं उपजें। २ । कूर्मोनत योनि जो कछुवा के आकार जा स्त्री को योनि होय तामें तीर्थङ्करादि महान् पुरुष उपज हैं। सामान्य पुरुष इस योनि मैं नाहीं उपजें।३। ए तीन भेद गर्भज के हैं। . तहाँ माता का श्रोणित व पिता का वीर्य र दोऊ मिल गर्भसं उपजै, सो गर्भज कहिए। माता-पिता के निमित्त बिना जाकी उत्पत्ति होय सो सम्मान कहिरा सो बादर सम्मछन जीवन की उत्पत्ति तो पृथ्वी आदि के आश्रय तें होय और सूक्ष्म जीवन की उत्पत्ति बिना सहाय आकाश में होय । सोश सूक्ष्म सम्मन्छन जन्म जानना । देवन की उपपाद-शय्या रतनमयी कोमल सुगन्धित शय्या तामें देवन का जन्म होय। नारकीन के उपजने के स्थान महादुर्गन्धित, धिनावने अनिष्ट ऊँट के मुखाकार नरक-क्षिति के लुमते घटाकारवत् स्पर्श के धरे, सो नारकी के उपजने का स्थान है। ऐसे देव नारकी का उपपाद जन्म है। र तीन मेद जन्म गर्भज सम्मूर्छन उपपाद के कहे। जब नव भेद योनि का भाव कहिय है। तहाँ अन्य जोव करि ग्रह जे योनि स्थान जैसे--पंचेन्द्रिय तिर्यश्च मनुष्य उपजने की योनि सो सचित्त योनि है। अन्य जीवन करि नहीं ग्रहै ऐसे पुदगल स्कन्ध की योनि जैसे-देव
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