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लाभ नहीं भया होय, सो तो अनादि मिध्यादृष्टि है । २ । और जे जीव सम्यक्त्व कूं पाय, पीछे पाप भावतत्व की वा तैं मिथ्यात्व में आया होय, सो सादि मिथ्यात्वी कहिये । २ । इनके होतें कर्म का स्वरूप नहीं पावै। इति मिथ्यात्व | आगे भाव भेद तीन बताइये है। शुद्ध भाव, शुभ भाव, और अशुभ भाव इनका अर्थ-तहां राग-द्वेष का अभाव, शत्रु-मित्र, कञ्चन तृण, रतन-पाशन इनमें राग-द्वेष नहीं होय, सौ शुद्ध भाव कहिये । १ । दान, पूजा, शील-जप, तप, संयम, ध्यान, शास्त्राभ्यास इत्यादिक क्रिया रूप शुभ भावन की प्रवृत्ति, सी शुभ भाव हैं। २। और जीव हिंसा भाव असत्य भाषण भाव पर द्रव्य हरण भाव पर स्त्री लम्पट भाव पुण्य उपरान्त परिग्रह के इकट्ठे करवे रूप भाव, सप्तव्यसन माव, पाखण्ड भाव, हाँसि कौतुकादि भराड भाव, रुद्र भाव, आरत भाव, क्रोध - मान-माया-लोभ भाव इत्यादिक पाप-बन्ध के कारण सो अशुभ भाव हैं । ३ । ये तीन भाव के भेद हैं। तिनमैं शुद्ध भाव तौ भव्य ही कैं होय हैं। शुभ अशुभ ये दोय भाव, भव्य तथा अभव्य दोऊन के होय हैं। तहां भव्य के मो तीन भेद हैं। निकट भव्य, दूर भव्य और दूरानदूर भव्य । तहां जे जीव थोड़े काल विमोक्ष जां, सो निकट भव्य हैं। १ । जे जीव बहुत काल में मोक्ष होंय तथा कबहूँ न कबहूँ अनन्त काल में होंगे, ऐसी केवलज्ञान में भासी है। सो दूर भव्य हैं। मोक्ष होवे योग्य हैं, तातैं इनको दूर भव्य जानना । २ । | जे
भव्य हैं. केवलज्ञान में भासे हैं। सो भव्य राशि हैं। परन्तु मोक्ष होने की सामग्री जो सम्यग्दर्शनादि जिनके कबहूं प्रगट नाहीं होय । सदैव संसारवासी, अभव्य समानि, कबहूं मोक्ष नहीं जांय, सौ इरानदूर भव्य हैं । ३ । यहां प्रश्न – जो भव्य कह्या अरु मोक्ष कबहुँ नहीं होय, सो कैसे बनें ? ताका समाधान हे भव्य ! तू चित्त देय सुनि । अभव्य राशि तौ बहुत ही अल्प है। सो देखि। सर्व जीव राशि तैं अनन्तवें भाग तो सिद्ध राशि का प्रमाण है । सिद्ध राशि अनन्त भाग. अभव्य राशि है। सो भो जघन्य जुगता अनन्त है। सो ये अभव्य तौ जब कहिये तुच्छ राशि जानना और भव्य राशि बहुत है। सो सुनि, ज्यों तैरा भ्रम जाय। एक महा छोटा खस-खस दाने प्रमाण निगोद स्कन्ध में, असंख्यात लोक प्रमाण निगोद शरीर हैं। तहां एक-एक शरीर में अक्षय जनन्त जीव हैं। इनका अन्त नाहीं । इस शरीर में तैं निकसि-निकसि अनन्तकाल तांईं, अनन्त जीव मोक्ष होवे करें, तो भी केवली कूं पूछिये, तब ही उस शरीर तैं निकसे तिनतें अनन्त गुणे जीव, भव्य राशि और कहैं। ऐसे ही इस
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