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जानता। इत्यादिक ज्ञान-दान देनेवारे का विनय करना, सो भी ज्ञान का अङ्ग है। थाका नाम बहुमान समधित अङ्ग है। ७। और अपने जा गुरु के पासि शास्त्राभ्यास किया होय, ता गुरु को नहीं छिपाईये। भावार्थ-जा गुरु के पास ते आपने ज्ञान-धन पाया होय, ऐसा को गुरु। सो कर्म योग तें-पीछे आपकौं विशुद्धता के योगते ।। तथा तप-ध्यान करि अनेक ऋद्धि आप कौं प्रगट भई होंथ । मति, श्रुत, अवधि, मनः पर्यय, ज्ञानादिक अनेक ऋद्धि प्रगटी होंय और अपना गुरु ज्ञानदाता, तितकै अवधि-मनः पर्यय नाहों। अस गुरु का नाम प्रसिद्ध नाहीं। आपको ज्ञान बड़ा, आपका नाम जगत् में प्रसिद्ध होय, तो भी अपने ज्ञानदाता गुरुको नहीं छिपाईये। रा भी ज्ञान का अङ्ग है। याका नाम गुरुवादि निह्नव अङ्ग है तथा आप भला सम्यकज्ञान मोक्ष-मार्ग के पन्थ का बतावनेहारा, पर-जीव का उपकारी, शुद्ध तत्त्व आपकू भले रुप आवता होय, तो ताकौं नहीं छिपाइये। जो ज्ञान दया-भण्डार, दया का मारण प्रगट करनहारा, अनेक संशय नाशनेहारा, उत्तम ज्ञान, जाकौं आप जानता होय, तौ ताकी नहीं छिपाइये। ए भी ज्ञान का अङ्ग है तथा परम कल्याणकारी, तव प्रकाशी कथन सहित शास्त्र, अपने पास है। सो कोई धर्मात्मा पुरुष अपने में तत्त्वज्ञान होने अभिलाषी प्राय कहै। फलानी पुस्तक आप पै होय तो हमको स्वाध्याय को हमारे मस्तक पै विराजमान करो, तौ हम पुण्य उपारजैं। तो अपने मस्तक जे शास्त्र होय, ताकी नहीं छिपाइये। यह भी ज्ञान का अङ्ग है। याका नाम भी गुरुवादि निह्नव अङ्ग है। ८। रोसे ज्ञान के आठ अंग हैं। सो धर्मात्मा जीवन करि धारच योग्य हैं। ए आठ अंग ज्ञान के जे भव्यात्मा विनय सहित पालें, सो तत्त्वज्ञान सम्पदा के धारी होय । रोसा जानि निकट भव्यन कों, ज्ञान के अंगन की रक्षा करना योग्य है। आगे मुनिजनकी ध्यान करवे के कारण दश स्थान बतावें हैं। इतनी जायगा परिणामन को विशुद्धता विशेष बद्रे, ध्यान की एकाग्रता विशेष होय, सो ही बताइये है। ध्यान की कदाचित् एकान्त क्षेत्र नहीं होय, बहुत जीवन के शब्द का कोलाहल होय, अनेक जीवन का आवना-जाना होय, तो ऐसे स्थान में परिणति चञ्चल होय। तातें ध्यान को एकान्त स्थान चाहिये। एकान्त बिना ध्यान की सिद्धी नाहों होय।। अशुद्ध क्षेत्र होय तो ध्यान लागै नाही. ताते रमणीक-निर्मल क्षेत्र चाहिये, तब ध्यान की शुद्धता होय । २। और जहां काष्ठ की व चित्राम की पुतरी नहीं होय तरंगमहल, रमणीक बिछौने इत्यादिक सराग क्षेत्र नहीं होय । महाउदास, वैराग्य बढ़ने का कारस. राग