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बुरा करने का सहज स्वभाव होय । महादुष्ट परिणामी होय । स्वामी द्रोही होय। माता-पितादि गुरुजन की आज्ञा है विदु हो । अनी और देव, गुरु, धर्म को आज्ञा तैं प्रतिकूल होय। राज विरोध क्रिया का करनहारा हो । जुआ, आमिद (मांस), मदिरा, वेश्या घर गमनो, जीव घाती, चोर, पर-स्त्री लम्पटी इत्यादिक सप्तव्यसन कर रञ्जयमान पापाचारी अनेक दोषन की मूर्ति ऐसे अशुभ मात्र जाके होंय । सो इन लक्षण सहित जे जीव भाव सो कृष्ण लेश्या है तथा स्वेच्छाचारी स्वच्छन्द होय तथा धर्म क्रिया विषै प्रमादी होय । मन्द बुद्धि, आलसी शिथिल शब्दी होय पर के किये गुण का लोपनहारा कृतघ्नी होय विशेष ज्ञान कला चतुराई करि रहित हो । पंचेन्द्रिय विषय का लोलुपी होय । महामानी होय । अत्यन्त गूढ़ चित्त का धारी होय मायावी होय जाके चित्त की ओर नहीं पावै। इत्यादिक चिह्न कृष्ण लेश्या के जानना । इति कृष्ण लैश्य । । १ । आगे नील लेश्या बहुरि जा बहुत निद्रा होय पर के ठगने की कला चतुराई में प्रवीण होय तथा और सौखवे की वांच्छा होय और अत्यन्त लोभ के उदय सहित धन-धान्यादिक इकट्ठे करिव को अनेक आरम्भ करता होय और काम चेष्टा करि बहुत 'ही विकल होय इत्यादिक लक्षण जाके होय सो नील लेश्या है । इति नोल लेश्या । २ । आगे कापोत तहां और दोष लगावै का सहज स्वभाव होय । अनेक नय जुगति देय पर की निन्दा करनहारा होय । जो हँस-हँसि पराया बुरा करें। पराई निन्दा करें चुगली करें। ऊपर तें विनयवान् होय जन्तरङ्ग में पराया बुरा चाह । बुरा करने का उपायी होय । परकों भला खाता-पीता पहरता देखि आप खेद पावै । परक सुखी देख नहीं सुहावें । पर के दुःख करवेकौं अनेक उपाय करता होय सदैव जाका चित्त शोक रूप रहता होय । जाके निरन्तर भय रहता होय और पर का अपमान करि सुख मानता होय । अपने मुखतैं अपनी बहुत प्रशंसा करता होय। आप जैसा पापी चोर असत् मारगी और कौं जानि कोई का विश्वास नहीं करे। आपकी बड़ाई करे खुशामद करै ताकौं राजी होय धन देवें। अपने पराये हेतु कौं नहीं समझें। युद्ध विषै मरण की जाकी इच्छा होय इत्यादिक चिह्न जाके होंय सो कापोत लेश्या जानता । इति कापोत लेश्या । ३ | आगे पीत लेश्या तहां कार्यकार्य समझें 1 खाद्य-अखाद्य कौं भी जानें भोगवे व नहीं भोगवे योग्य वस्तुकों जानें षट् द्रव्य गुण पर्याय का जाननहारा होय । सर्व पदार्थन में समता होय । पूजा, जप, तर दान विषै प्रोतिमान होय। दद्या धर्म चलावे का
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