________________
जगत् पूज्य हैं। अख सुह बंचय तसयरा बुधे कहिये, इन्द्रिय सुख है सो इनके ठगने को चोर समानि जानि, || पण्डितजन चेतो। भावार्थ-नाना प्रकार शास्त्रन का अभ्यास सो हो भया वांछित सुख का दाता मोक्ष-मार्ग दिखावे कुं दीपक समान चिन्तामणि रतन। सो सहज हो स्वर्गादिक सूख का देनेहारा ऐसा जो विद्याभ्यास, | जगत् पूज्य गुरण ताके ठगवेकौं इन्द्रियजनित सुख की अभिलाषा चोर समानि है। भावार्थ-ऐसे ज्ञान गुण के धारी ज्ञानी भी कदाचित् इन्द्रिय सूखन की भारति मैं आ पड़ें। तो वह आरति धर्म-शास्त्रन का ज्ञान ठग लेघ, लूटि लेय है। तातें जिनदेव भाषित विद्या का माषी शुभाशुभ पन्थ का वेत्ता इन्द्रियजनित सुखन में धर्म छाडि नहीं जाय है और अनेक प्रकार दुर्धर तप के धारी तपस्वी अनेक ऋद्धि संयुक्त औरनक पुरय-सम्पदा के दाता, जगत् पूज्य गुण भण्डार ऐसे तपस्वी मी कदाचित इन्द्रिय-सुखन को लालच करि भोगन की अभिलाषा करें तो तपादिक अनेक गुण सो इन्द्रिय चोर लोट लेंय हैं। तातें जो सांचे तपस्वी वीतराग दशा के धारी हैं, सो इन्द्रियजनित भोग से राग-भाव नहीं करें। अपने तप धन की रक्षा करें। चारित्र जो पञ्च महाव्रत, पञ्च समिति, तीन गुप्ति-रातेरह जाति चारित्र मोक्षरूपो द्वोपकं पहुँचावनेकं जहाज समानि, त्रिभुवन के जीवन करि वन्दनीय । ऐसे चारित्र रतन के ठिगवेकं जो इन्द्रिय-सुखन की भावना है सो लुटेरे समान है। जो ऐसे चारित्र का धारी यतीश्वर भी कदाचित् अपने धर्म त बिछुड़कें भोगन वि आवै तो ताका चारित्र रतन चुराया जाय है । तात जेते चारित्रधारी तपोधनो हैं। ते इन्द्रिय-मोगन ते राग-भाव तर्ज हैं। पंचेन्द्रिय तथा मन का जीतनहारा षट काय जीवन का रक्षक संयमी इन्द्रिय संयमी प्राण संयम का धारी जोगी जगत् वन्दनीय भो भोग विर्षे अभिलाषा करें, तो अपना संघम रतन ठिगावै। तातै जे संयम के लोभी हैं ते अपने गुण की रक्षा के हेतु भोगन की इच्छा नहीं करें और स्वर्गादिक का दाता धर्म्य-ध्यान और शुक्ल-ध्यान करि मोक्ष का अविनाशी सुख पावै। सो रोसे धर्म्यशुक्ल-ध्यान के धारक यतोश्वर भी कबहूँ इन्द्रियजनित सुख के प्रेम में पड़ि जाय तौँ अपना ध्यानधन गमा। सो ध्यानी समता रस का भोगी इन्द्रिय सुख की चाह नहीं करें और सहज सुधारस का स्वादी अनेक तत्त्व विचार के जोर करि कषायन का मद तोड़ करि मोह को निर्बल पाड़ि आप समता सागर में प्रवेश करि निराकुल तिष्ठनेहारा ऐसा यतीश्वर कदाचित इन्द्रिय सुख के द्वार सराग चित्त करि निकस तौ इन्द्रिय चोर ताका समता