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जननी को ठगे। जगक कहिये, पिता । तीए कहिये, स्त्री । मित्तो कहिये, मित्र । इनकौं ठगे है। तपदे तराराह दाणो कहिये, तन देय परन्तु तृण का दान नहीं देय। धम्म रहयो मित्य काय सम जीवो कहिये, धर्म करि रहित जीव मृतक के शरीर समानि है। भावार्थ- जे जीव महाकृपण मन के धारी सूम हैं। सो अपने तन कौं आदिले सर्व कुटुम्ब कौं ठगे हैं। सो ही बताइये है। अपने तन निमित्त अल्प-भोजन रस-रहित खाय, पेट में भूखा रहे । लोभी उदर-भर भोजन नहीं करै, भूख सहै । शोत-काल में तनपे मोटा वस्त्र सो भी अल्प, साता तै सम्पूर्ण तन नहीं कैश की वेदना सहै। घास लकड़ी जला कर तातैं तन तपाय, शीत-काल पूर्ण करै, बहुत कष्ट सह दिन बितावें । दाम-दाम जोड़ि साता मानै । ऐसे तन कूं कष्ट देय। जा तन तें भार बहि-बहिं, मजूरी कराय धन कमाया, ताही तन को नहीं पोषै। पेट भर भोजन नहीं देय। ऐसा लोभी अपने तन कूं ठगनेहारा कहिये और पुत्र है सो भूख का मर या रुदन करें। और के बालक अच्छा खाय-पहरै, तिनकौ देखि यार्क पुत्र यापै अच्छा खान-पान नौगे-तरसे, परन्तु एलोमी दया रहित भोजन नहीं देय, तब पट- भूषस कहां से पावें । ऐसे
सूम, पुत्र कूं ठगनेहारा कहिए और या सूम की माता ने नव मास पेट में राखा था। ऐसी माता, पुत्र वै मला भोजन-वस्त्र माँगें । कहै है पुत्र ! अपने घर में धन अटूट है । अरु तूं हम कौं पेट भर अन्न भी नहीं देय। सो हे पुत्र ! हम ऐसा किसकूं कहें ? हमको भूख रहे है, शीत वेदना रहे है, अग्नि तैं ताप, दिन-रात काटै, सो तोहि दया नाहीं आवें है ? ऐसे वचन माता के सुनि के सूम अगल-बगल हो जाय । सुनि-अनसुनी करै । परन्तु दाम एक भी नहीं देय । सो माता का ठगनहारा कहिए और इस सूम का पिता, सो ताने बड़े-बड़े कष्ट सहकें, द्वीप सागरन उद्यान -नगर-देशन में गमन करिकरि अनेक भूख-प्यास सह कै, पापारम्भ ठानि अनेक द्रव्य उपाय। जब जानी कि मेरो पुत्र नाहीं, सो धन घर सोहता नाहीं । तब पुत्र बिना, धन-सम्पदा वृथा जानता भया । तब पुत्र के निमित्त अनेक कुदेव-कुमेष पूजे। अनेक मन्त्र तन्त्र, यन्त्र, करि करि पापारम्भ बांध्या । और-और व्याह किये। अनेक स्त्री परन्या । तब कोई कर्म जोग तैं एक पुत्र भया। तब पिता बहुत सुख किया । याच किन कूं मन वांच्छित दान दिये । पुत्र जन्म का बड़ा उत्सव किया। पीछे अनेक भले-भोजन लाय पुत्र के दिया। अनेक पट- भूषण देय, लाड़िला राखा । ऐसे जतन करि बढ़ाया तरुण किया। आप
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