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नाहीं। आपकों बावता नाहीं। पठन कर, तब औरन के आगे-आगे बोले। सो ऐसा मानी-अज्ञानी आप अपने कौ पण्डित मान । ते जीव हाँ सि कुं प्राप्त होय हैं और जिस स्त्री का पति मर गया होय। ऐसी विधवा स्त्री; शरीर में नाना-प्रकार श्रृङ्गार करें। ताम्बल खावना, दर्पण में मुख की शोभा देखनी, शरीरकी वस्त्र पहराय निरखना, अजन-सुरमा नेत्र में अञ्जन करना ऐसी स्त्री निन्दा पावै। स्त्री की शोभा, पति के पीछे थी। सो पति गुराडे, श्रष्टार मार परेको भा और दिखाया चाहै। सो कुशोल दोष-मरिडत-स्त्री, विवेकीन के हॉसि का मार्ग है और जे जीव जगत्-करि निन्द्य होय । सर्व जगत-जन को अप्रिय होय । जग निन्द्य कियाआचार के धारी होंय । जहां जाय, तहां अनादर पावै। रोसा जीव, अपयश की मूर्ति जाकौं लोक-निन्दा का भय नाही, महानिर्लज्ज होय सदैव हर्ष ते फिर, सुखी रहै। ऐसा पाप-निशान मुर्ख जग में हाँ सि का मार्ग है। ऊपर कहे ये तीन जाति के जीव, सो हाँ सि के मार्ग जानना। तातै विवेकी-जन हैं तिनकं जगत-निन्द्य कार्य तजना योग्य है। तात जे अल्प पढ़या होय, ताकौ तौ विशेष-ज्ञानी के पीछे पढ़ना योग्य है और विधवा स्त्री को श्रृङ्गार करना योग्य नाहीं । जगत्-निन्द्य जीव कौं देश-नगर तजि देना तथा लज्जा सहित रहना, ये बात सुखकारी है सो हो करना भला है। प५। आगे ऐसा कहैं हैं जो जनादर तो तिनका गुण है और किनका आदर भी दुख है, सो बताईये हैगाथा-वर सतसंग अपमाणो, हेयो कुसंग जंतु सतकारो । जिम जुर जुत पय हेयो, लंपण, पादेय कटुक भेषजये ॥८६॥
अर्थ-वर सतसंग अपमाणो कहिये, सत्संग में अपमान होय तो गुणकारी है। हेयो कुसंग जन्तु सत्कारो कहिये, कुसंगी जीवन में गये अपना सत्कार भी होय तो भी तजने योग्य है। जिम जुर जुत पय हेयो कहिये, जैसे-ज्वर वारे कं दुग्ध तजना योग्य है। लंघरण पादेय कटक मेषजये कहिये तथा लंधण अरु कटुक औषधि उपादेय है। भावार्थ-सत्संग में सप्तव्यसन के धारी जीव अपमान पार्चे हैं। काहे ते, सो कहिये हैं। जो सत्संग है सो जगत्-गुण करि भरया है। यहां जगत्-निन्द्य औगुण, तिनके धारी औगुणी जीव, तिनका सत्संग में प्रवेश पावता नाहीं। सत्संग में औगुणी-जीव अनादर पावै और कोई सत्संग में आदर चाहै, तो कुसंग के दोष तजा। गुण कौं धारौ, ज्यों सत्संग में जादर पावो और जे प्रोगुणी हैं तिनका आदर, सत्संग में होता नाहीं। ये सत्संग
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