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क्रिया को नहीं छोड़े। सो जाति-मढ़ कहिए।३। लोक मढ़ताको कहिए जो लौकिक अनेक खोटी पद्धति । अज्ञानता रुप पाय रुप कोध-मान-माया लोभ रूप चोरी.जवा, पर-रची गमनादिक अनेक पाप रुप क्रिया
कोई अज्ञानी जीव करै है। सो ऐसी अयोग्य क्रिया करता देखि कोऊ धर्मात्मा ने प्रार्थना करि मनै किया जो | ३३१ हे माई ! रा कुकारज महादुखदायक लोक-निन्द्य मति करै। तोकू दोऊ भव दुःख करेंगे। ऐसे हित-वचन कहे। तब वह अज्ञान दरिद्री मूर्ख बोलता भया। हे भाई।हम हो इस कारजको नहीं करें। ऐसी क्रिया के करता तौ लोक में बहुत हैं। तुम किस-किसकू मनै करोगे ? संसार में सर्व लोग कर हैं। इस मांति जो अज्ञान लोकन की देखा-देखी खोटा कार्य करें आप ज्ञान अन्ध कछू विचारे नाही, हठग्राही पाप क्रिया करे है। सो लोक-मुढ़ कहिए। २। और धर्म-मूढ़ ताकं कहिए है। जो तहां आगे कोई कुल विर्षे तथा लोक विषं अज्ञानता करि तथा बिना विचार तथा बिना परखै खोटा धर्म हिंसा सहित सेवते आए। ता विषय प्रत्यक्ष जीव हिंसा है। ऐसे मार्ग के उपदेशदाताकौं महाक्रोध-मान-माया-लोभ की तीव्रता है। पंचेन्द्रिय भोगन के पोखनहारे तप संयम रहित देव होय तिनमा गानें। ते जीव भोले धर्म-एटता लेग हैं ! कैसा है वह देव जाको छवि देखें महामय उपजै? ऐसी विकराल मुद्रा का घरो होय। निर्दयी मांसाहारी होय। ऐसे देव कूप्रभु मान पूर्णा देव माने हैं, बड़े क्रोध का धारी जनक शस्चन के धारनहारे बहु परिग्रही भयानक आकार धारे, कर वचन के धारी जाका विनय नहीं करें तो मार महामानी और भोले जीवनसूअपनी सेवा करावनहारा और नय-जुगति देय पराया धन खावनहारा मायावी लोभी अभक्ष्य भोजन के करता तिनकौं गुरु माने। हिंसा किश धर्म का उत्तम फल होय भोग-भोगवे तें पुण्य होय ऐसा कथन जहाँ पाइये ऐसे शास्त्र तें धर्म मानें। रोसे कुदेव, कुधर्म, कुगुरु के सेवनहारे भोले जीव धर्मार्थी धर्म जाति कुमार्ग हिंसा रूप कुआचार रूप प्रवृत्तते भये। ते जीव मोक्ष-मार्ग जानित सन्तै धर्म-फल के लोभी लोकारद धर्म सेवते भये। तिनकौं कोई साँची दृष्टिवाला धर्मात्मा देखि दया करि कहता भया।
भो धमार्थी हो! तुम धर्म के अर्थ पाप का सेवन मति करो। यह जीव-घातक मांसाहारी देव नाहीं है। भगवान् ।। ३३१ ।। का रा चिह्न नाहीं है। परिग्रह धारी शस्त्रधारी कषायी गुरु नाहीं। हिंसामयी धर्म नाहीं। हे भव्य ! तू विचारिक
देखि के देव धर्म गुरु का सेवन करना ज्यों तेरा भला होय। ऐसे धर्मात्मा के वचन सुनि, यह अज्ञानी ज्ञान