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उल्टा टांगि दिया। पीछे च्यारों तरफ से अनेक बांसन, कोड़ा को मार दीजिये, सो महादुःखी है। सो ऐसा दुःख तो नारकीन की है और एक चोर का मुस्न विर्षे वस्त्र भरि ऊपरि तें सूजोकर मुख सों दोजिये। मल-मूत्र के ॥३३०
द्वार सब बन्द कर दीजिये सो महादुःखी भया। पोछे कान मैं वस्त्र भरि सृजी ते सों दिया। कान में वस्त्र भरि द | कान सों दिया। नेत्र सों दिये। प सब तन की बांधि गठिया-सी बनाय कै एक खाल की मसक में डारि
मसक ऊपर तें सों दई, सो गोला-सा बनायके ऊपर दस-बीस मन को एक शिला धर दई। सो अब इसके दुःख का केवलो जाने और कों तो बाह्य दुःख दीखे। परन्तु याके गढ़ दुःख की औरनकौं तो ठीक नाहों। सो ऐसा दुःख निगोद राकेन्द्रिय के जानना। तातै नारकोम के दुःख ते असंख्यात गुणा निगोद राकेन्द्रिय के दुःख जानना। रोसे हो बेन्द्रिय के भी तीन इन्द्रियाँ नाहीं। तातै ताकू भी तथा तेइन्द्रिय के दो इन्द्रियाँ नाहीं। सो भी महादुःस्त्री। चौदृन्द्रिय के राकेन्द्रिय नाहीं। सो भी महादुःखी! रोसे विकलत्रय के महादुःख सो मी नारकीनते असंस्थात गुणा दुःखो है तात इन विकलत्रय जीवन में महापाप के उदय ते आवे है ताकरि महादुःखी जानना। सो ये जीव माया कपाय के जोग तैं इस भवसागर में पड़े हैं। तातै माया हो में दीरघपना जानना । हे भाई! और तीन कषायन के रस तौ जानि लीजिए है। परन्तु माया नाहीं जानी जाय । जो जानिये, ताका उपचार भी कीजिये। जानने में नहीं बावै ताका इलाज कहा बने ? सो क्रोधादि तौ जानिए है और कोई क्रोध करें तो ताका उपचार | यह कि जो कोई क्रोधी मारता आवे ताके पास दोनता पकरि रहै तौमारे नाहों और कोई पापी-मानी आपकों मारने आव तो ताके पासि अपना मान तजि, वाका विनय करें। वाकी स्तुति करें तो मानी मारे नाहीं और कोई लोभी आपको मारै तौ वाकौं बहुत धन देय तौ लोभी मार नाहीं। रीसे कोध-मान-लोभ- इन तीन कषायन का तौ उपचार है। याका उपचार किए शान्त हो जाय । परन्तु यह दगाबाज ऊपर तें नमन करै। मुख देखे दोन वचन बोलें। सेवक होय, पुत्र सम होय। पीछे दाव लगै दगा करै। याका उपचार विवेकीन से भी नहीं बने। तातें महामढ़ है। इस कषाय का फल दीरघ पापकारी है। ता पाप के फल ते जीव, नरकन के दुःख ते बड़ा दुःख | निगोद आदि का पावे है। ऐसा जानि माया कषाय कंतजना तथा इन पापचारी-मायावी जीवन को अपने बलतें।
पहिचान, तिनका संग तजना भला है। ऐसा जानना। आगे धर्म का फल इन्द्रिय-जनित इन्द्रिय-सुख है। यातें
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