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हम भी पश्चन तथा कहनेवाले कू राजी करौगा। सर्व पञ्चन में लाय रौसी विपत्ति डारोंगा, सो सर्व घर-धन से जायगा। एक-दोध की आबरू ले मसँगा। मौकों दोष लगावनहारा तथा दण्ड देनेहारा कौन है ? घनी करोगे
३५१ तो पर अपनी पञ्चायती लेवेंगे। मेरे का पञ्चन तें अटका नाही। इत्यादिक एशन में सभा-विरोध वचन बोले, । सो जोव अपयश की मूर्ति, पञ्चन करि निन्दा पावै है। ताकी महामूर्ख कहिये । तातै पंचन में सभा-विरोध वचन नहीं बोलिये।३। जहां अपनी जाति इकट्ठी होय, कोई जाति का प्रबन्ध बांध्या होय। तहां कोई जाति में प्रवृत्ति नाहों है तथा कोई जाति का खान-पान मने है तथा कोई अभक्ष्य खान-पान मने है तथा कोई रीति का वस्त्रआभषण राखना मना है तथा कोई व्यापार-वणिज, बांकी पाग बांधना, फैटा का बांधना, शस्त्र का बांधना इत्यादिक मलिन-क्रिया खोटा-चलन मन है। सो काहू से कोई एक बात अयोग्य बन गई। ताकौं जाति के सब पंचों ने बुलाय के कही। हे माई! तुमने अज्ञानता करि यह जाति-विरोधी कार्य किया है। सो सर्व जाति तेरे नै दण्ड मांग है। तने पंचन की मर्यादा उल्लङ्घन करी है। तातें ये दण्ड देहु। तब जे विवेकी, जाति मर्यादा का जाननेहारा होय । सो तो जाति के वचन सुनि कैं, आप हस्त जोरि विनति करै। जो अयोग्य आचार मोत बन्या तो सही है। अब जो सर्व जाति की आज्ञा होय, सो ही मोकों प्रमाण है। अब आगै तें ऐसा आचार-क्रिया नहीं करूंगा। ऐसा वचन सर्व जाति कौं सुखदायी बोलना, सो तो यश पावने का कार्य है। कोई मुर्ख होय सो ऐसे कहे, जो हम काह की चोरी थोड़ी हो करी है। जाति दण्ड देय सो जाति कोई राजा धोरी ही है। ऐसी सीख
और कोऊकौं देय तो देय । हम तौ जैसी हमारी इच्छा होयगो तैसा खान-पान, आभूषण-वस्त्र करेंगे। किसका मंह है सो हमको मनैं करेगा ? इत्यादिक जाति-विरोधो वचन बोलना सो मुर्खता है। निन्दा पावै है। तातै जाति सभा में सभा-विरोधी वचन नहीं बोलना। ४ । लौकिक वि मला कार्य प्रगट होय ताकौं निन्दिये नाहीं और लौकिक वि जो कार्य निन्दनीय होय, ताक् अङ्गीकार नहीं करिये सो ताकौ विवेको कहिये। जैसे–चोरी, जुना, पर-स्त्री, व्यभिचार, वैश्यागमन, पर-जीव-घात. मदासादि खाना इत्यादिक सप्तव्यसन कारज थे लौकिक | कर निन्द्य है। सो इनकौ करें अरु रोसा कहै कि जो हमारी इच्छा होथगो सो करेंगे। हमारा कोई कहाणो करेगा? ऐसा वचन कहै ताक मूर्ख कहिये। निन्दा पावै है। तातें लोक-निन्द्य कारज नहीं करिये। ५। अपने
३५. कराचरातारा