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पंखन का जानना । तातै विवेकी हैं ते पक्षबल नहीं तोड़े हैं। जैसे-कोई बड़ा राजा है। ताके धन खजाना बड़ा है। आप महाबलवान होय। बड़ा हो। ऐसा हो । परन्तु अपनी पत के योद्धान का अपमान करि तिन । बड़े सामन्तन का सहाय पक्ष तोड़े तो आप राज्य भ्रष्ट होय और योद्धान का पक्ष होय हजारों राजा जाकी पक्ष । होय तो जीत पावै सुखी होय । तातै विवेकी होय तिनको तन तें धन तें राज ते विनय ते जैसे बने तैसे पक्ष बल
राखना योग्य हैं तिनमें उत्कृष्ट पक्ष धर्म का है। ताका हो सहाय राखना योग्य है। आगे हित है सो बड़ा बल है। ऐसा बतावे हैंगाथा--गेह बल रघु-हरि दोऊ दहमुह जय सोय लेय लंकाए । दसिर बन्धुविरोधय तण कुल खय राय लोय अपसामओ ॥७८॥
अर्थ-रोह बल रघु हरि दोऊ कहिये, परस्पर स्नेह के बल तें राम-लक्ष्मण दोऊ। दह मुह जय कहिये, दशमुख को जीत कैं। सीय लेय लङ्कार कहिये, सीता की लेय लङ्का से आये। दहसिर बन्धु विरोधय कहिये, दशशीश ने बन्धु के विरोध तैं। तण कुल स्वय राय खोय अपसायो कहिये, तन कुल अरु राल्य का क्षय करि अपयश पाया। भावार्थ-परस्पर बन्धुन के स्नेह होय सोहो बड़ो सैन्य है। स्नेह ही बड़ा बल है । सोही बड़ा खजाना है। सो ही बड़ा पुण्य का उदय है। सो ही बड़ा यश है और परस्पर बन्धुन में विरोध का होना सों ही बड़े पाप का उदय है। सो हो अपयश है। सो हो हार है। जैसे-राम-लक्ष्मण दोऊ भाइन ने परस्पर स्नेह रूपी सैन्या तें अपने बन्धु स्नेह के बल रावण तीन खण्ड का स्वामी महामानी बड़ा जोधा च्यारि हजार मक्षौहणी दल का ईश तिसकौं युद्ध विर्षे जीत्या। तार्को मार अपनी स्त्री महासती ताहि लई। पीछे इन्द्र की विभूति समानि सम्पदा सौं भरी देवलोक को शोभा सहित ऐसी लङ्का-पुरी ताका राज्य पाय इन्द्र की नाई लङ्का में प्रवेश करते मये । सीता सहित लङ्का का राज पाय सुखी भये सो यह दोऊ भाईन के परस्पर स्नेह रूपी सैन्य बल का माहात्म्य जानना और परस्पर बन्धु विरोध तें रावण का क्षय भया। रावण ने भोलापने ते भाई विभीषणसे द्वेषभाव करि देश तें काझ्या। सो भाई विरोध से विभीषण रामचन्द्र पैगर। सो राम महासजन, बार के रक्षक विभोषणकं स्नेह देय राखा। विभीषण के जात रावण निष्पक्षो भया। युद्ध मैं मारा गया। सो तन नाश भया कुल नाश भया। अरु राज्य भ्रष्ट होय अपयश पाय कुगति गए। सोए बन्धु विरोध के अन्याय का फल है।
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