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मुजाईरा नाही. जालिए नाहीं जहां अग्नि का प्रयोजन भी होय ती घटाय के कीजिये। ऐसे अग्निकाय को राखे । बिना प्रयोजन पंखादि वस्त्र हिलावना झटकनादि क्रिया करि पवनकायको नहीं सताइये। सो पवनकाय की रक्षा है। वनस्पति के प्रत्येक साधारण दुभ, घास, पत्ता, बैलि छोटे वृक्ष, बड़े वृक्ष गुल्म, कन्द, मूल इत्यादिक हरी-नीलो कू बिना प्रयोजन खेद नाहीं करें। काटे नाहीं, छेदे नाही, छोले नाही, पैले नाही, हाथ-पांव तें मर्दन नाही करें इत्यादि विधि से वनस्पतिकाय की रक्षा करें और बेइन्द्रिय जौक, इली नारू आदिक केचुवा ए बेइन्द्रिय हैं। इनकी काया राक्ष और तेइन्द्रिय खटमल, चींटी, तिरूला, कुन्थुवादि जीव तेन्द्रिय हैं। इनकी काया राखै और चौइन्द्रिय मासी, मच्छर, टीड़ी, भ्रमर, डांस इत्यादिक चौइन्द्रिय जीव इनके तन की रक्षा करें इनको घात नाहीं। पंचेन्द्रिय हस्ती, घोटक, कुत्ता, बिल्ली, मनुष्य, देव, नारकी-श पंचेन्द्रिय हैं इन , समताभाव राखि इनके रक्षा रूप भाव राखि दया करे। ऐसे त्रस जीव च्यारि प्रकार हैं। तिनको पोडै सतावें नाहीं सो उसकाय की रक्षा है। ऐसे पृथ्वी, अप, तेज, वायु, वनस्पति, प्रस-ये षटकाय हैं। इनकी काया की रक्षा करे सतावै नाहीं मारे नाहीं। मन-वचन-काय करि इन षट भेद काया हैं। तिनकी रक्षा सो हो धर्म है। सो श्रावक तो एक देश रक्षा करें। मुनि सर्व प्रकार रक्षा करें। इन षटकौ राखें हैं। सो ही मोक्ष-मार्ग-धर्म है। ऐसे इन षटकाया कौं राधम कह्या । सो काया राक्षे धर्म जानना। आगे ऐसा कहिये है, जो जहां रोती वस्तु नहीं होय तो तिस देश नगरकू तजिरा-- गाथा-नहि पुर मह सतकारो, गह-बन्धव गह-मित्त जिणगेहो । विडा धम्म ण सुसंगो, सह पुर देसोय हेय दुध आदा ||७५॥
अर्थ-जहि पुर पह सतकारो कहिये, जिस पुर में सत्कार नहीं होय। राह-बन्धव सह-मित्त जिण गेहो कहिये, जहां बोधव नहीं होंय, मित्र नहीं होंय, जिन-मन्दिर नहीं होय। विद्या धम्मण सुसने कहिये, विद्यावान् नहीं होय, धर्म नहीं होय, सत्संग नहीं होय । सह पुर देसोय हेय बुध आदा कहिये, सो पुस्-देश बुद्धिमान् आत्मा के तणने योग्य है। भावार्थ--जे विवेकी हैं ते ऐसे अशुभ देशादि होंय, तहो नहीं रहैं। सो ही कहिये है। जहो। जिस पुर-स्थान में अपना आदर-सत्कार नहीं होय, तहां विवेकी नहीं हैं। रहैं, तो अनादर पा हैं और अनादर ते, परिणति संक्लेश रूप होय है, पाप बन्ध होय है। तातै रहना ही भला नाहीं और जहां अपने
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दिर-सत्कार
अशुभ देशादि शाकाहये, सो पर
1 विवेकी नहीं नहीं रहे। सौहाद्धमान् धात्मा ।।।