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बनाये। तुम दान देना तजि उल्टे याचना क जाये तथा तुम घर के कूटम्बी मोही तजि औरनत स्नेह करते फिरौ ।
हो। सो हे भोले । येसे तेरे मोड-बहरूपिया कंस नाना स्वोग देख हमको बड़ा आश्चर्य आवे है? सो तेरी कौनसु || सो गति होयगी सो हम नहीं जाने अन्तर्यामी जानें। ऐसी शिक्षा उत्तम जीवनकों गुरु देते भए। सो विवेकी हैं
तिनकौ तजे पीछे ग्रहण करना योग्य नाहों। अरु कमतने कम अंगीकार करें, सो ताका तप लैना बालक का-सा चरित्र है तथा नट के समानि स्वांग धरना जानना। ऐसा जानि विवेकी जो धर्म कार्य करें सो प्रथम हो विचार के करना योग्य है । ७३ / आगे ऐसा कहैं हैं जो कौन वस्तु तजि किस वस्तु को तजि किस वस्तु कौँ राखिये, सो ही बतावै हैं-- गाथा-पुरतज्जे घण कजय सहरणतज्जेय काजकुलरमथो । कुल तजय तणकजय पुरवणकुलकाय तज्यधम्मकवाय ॥ ७ ॥ ___ अर्थ-पुरतज्जे धण कन्जय कहिये, पुर तो धन के निमित्त छाडिए है। सहधरा तज्जेय काल कुल रक्खो कहिये, सो धन कुल की रक्षा के निमित्त तजिए है। कुलतज्जय तण कजय कहिये, कुल को ताके वास्तै तजिए है। पुरधरा कुलकाय तज्यधम्मकजाय कहिये, पुर धन कुल काय ए सब धर्म के निमित्त तजिर है। भावार्थजगत् जीव कुटुम्ब मोह से तथा मानादि कषाय पोषने को तथा परम्पराय आपकौं सुख होयवे को इत्यादिक कर्म कार्यन के निमित्त सहायकारी सुखकारी धन जानि ताके पैदा करनेकौं यह विवेकी अपनी बुद्धि के बलत अरु पुण्य के सहाय ते घर तजिकै दोषान्तर समुद्र वन इन आदिक विषम स्थान कानन (वन) मैं प्रवेश करि बहुत कष्ट खाय क्षुधा, तृषा, शोत, उष्ण अनेक कष्ट सह के धन पैदा करे है। तब धन के निमित्त घर तजिये। ए बात प्रसिद्ध है। जो देशान्तर जाय धन कमाय लावै है-तब धन होय है और ऐसे कष्ट करि कमाया धन सो | कुटुम्ब की रक्षाकौं खरचिरा खुवाइये है। कोई ऐसा कार्य बन जाय जो धन गए कुटुम्ब बचे तो कुटुम्बकों राखिय धन दीजिए सो कुल कुटुम्ब की रक्षा के निमित्त धन तजिए और कोई काम समय ऐसा आवे है। जो अपने तन की रक्षा के निमित्त कुल कुटम्ब कौं तजिए है और कदाचित अपने धर्मक प्रयोजन आय प., तो कुल पुर, धन सर्व हो धर्म की रक्षाको तजिए । तनादिक तजै धर्म रहै तौ तनादिक सर्वको तजिकै अपने धर्म की रक्षा कीजिए। यहां प्रश्न? जो तुमने कह्या। काय तनिक भी धर्म राखिय सो काय गई सख धर्म कहाँ र
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