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हेय वचन कहिए है। तहाँ क्रोध वचन मा-माया-लोभ वचन सप्तव्यसन रूप वचन पाय पोषण झूठ वचन सो या झूठि के च्यारि भेद हैं सो ही कहिश है । एक तो छती वस्तुको अवती कहना सो असत्य है।। अछतीकौं छतो कहना सो भी मूठ है। 21 वस्तु थी तौ कछु और ही अरु वाक कहना कछ और ही सो भी मूठ है । ३। जिन-आझा हित परमार्थ ते शून्य ऐसा वचन सो मुठ है। ४। योग्य अयोग्य वचन भेद हैं सो कहिए हैं। गाथा-बयणो हेयादेयो, सत्तोपादेय वयण जिण धुणि सो । हेयो चयण अनत्तो, णिदो कुगइदेय सुत रहियों ॥ ३७॥
अर्थ-वचन हेय उपादेय रूप है। सो सत्य तो उपादेय है। सो वचन जिन-आज्ञा प्रमारा है, ग्रहवे योग्य है। अतत्व वचन है सो हेय है निन्द्य है कुगति का दाता है और जिन-आज्ञा के विरुद्ध है। भावार्थ सत्य जिन वचन सो तो उपादेय है और अतत्त्व असत्य वचन हेय है । ता असत्य के भेद ग्यारह हैं। सोही कहिए है। प्रथम नाम-अभ्याख्यान कलह वचन, पशुन्य वचन, असम्बद्ध प्रलाप वचन, रति वचन, अरति वचन, उपाधि वचन, निकृष्ट वचन, अपरिणति वचन, मौखर्य वचन और मिथ्या वचन । अब इनका अर्थ-तहाँ ऐसा वचन बोलना कि देखो याने बहुत बुराई करी, याने बहुत बुरा वचन कह्या, याका नाम अभ्याख्यान वचन है। तहां ऐसा कहना जातें परस्पर युद्ध होय सो कलह वचन है। ऐसा वचन कहना सो जाकरि पराया छिपा दोष प्रगट होय सो पैशुन्य वचन है। जहाँ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इनके सम्बन्ध त रहित बोलना सो असम्बद्ध प्रलाप वचन है। इन्द्रियनकौं सुखदाई जाकं सुनि रति उपजै ऐसा वचन बोलना सी रति वचन है। जाक सुनि इन्द्रिय मन कुं अरति उपजै अनिष्ट लागै सो अरति वचन है। जहाँ अति परिग्रह की आसक्तता रूप लोभ की वृद्धि लिए वचन का बोलना सो उपाधि वचन है। जहाँ व्यवहार विष ठगवे कू जुगत रूप वचन का बोलना सो निकृष्ट वचन है। जहां देव, गुरु, धर्म, व्रतादिक पूज्य स्थान तिनका अविनय रूप वचन कहना सो अपरिणति वचर है। जहां चोरन की चतुराई कला की शुश्रषा रूप वचन सो मौखर्य वचन है। जहां धर्म घातक या रहित अव्रत पोषित वचन सो मिथ्या वचन है। इनकू आदि जे अशुभ वचन सो सम्यग्दृष्टिक सहज ही हेय हैं। जो बिना प्रयोजन परस्पर बात करना सो विकथा वचन है। ता विकथा के भेद पत्रीस हैं। सी ही कहिए हैं। प्रथम नाम स्वी