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जीव, समय-समय जसे-जैसे राग-द्वेष भाव कोध मान-माया लोम भाव, हास्य-भय शोकादि कषायनके अंश सहित ज्यों-ज्यों परिशम्या ताकू कंवलज्ञानी युगपत जाने हैं। एक-एक जीवने अनन्तकाल संसार-भ्रमरा करतें, एक-एक पर्याय च्यारि गति सम्बन्धी अनन्त-अनन्त धरी हैं, सो केवलज्ञानी जाने है। इस जीवने देव पर्याय अनन्त बार पाई, सो देवनति मैं नाना भोग भोगते भया जो शुभाशुम भावनका परिणमन ताकं केवली जाने हैं। अनन्तबार इस जीवन पाप भावनतें नरक पर्यायके दुख देने तिनमैं भये जो संक्लेश भाव तिनकं केवलज्ञान जान है। पशु पर्याय एकेन्द्रियादि पंचेन्द्रिय पर्यन्त अनन्तबार पाई। तिनमें भये जो राग-द्वेष भाव तिनकू केवलज्ञान जान है। संसार भ्रम अनन्तबार भया जो मनुष्य तिन पर्यायनमैं भये जो शुभाशुम भाव, तिन सबक सेशनज्ञानी जाने हैं और ज्यारि गतिमैं ममतपरिणम्या जो पुद्गलस्कंध पर्यायन रुप, अनेक रूप, तिन सबको केवलज्ञान जाने है और अवार वर्तमान कालमैं च्यारि प्रकार देव सर्व मनुष्य पशु और नारकी च्यारि गतिके जीव सुख-दुख रूप प्रवत हैं। तिन सबक केवली जाने हैं और पुद्गल स्कंध जे-जे स्पर्श रस गंध वर्ग होय परिणम्या ते-ते केवली जान हैं और आगामी अनन्तकाल विर्षे एक-एक जीव अनन्त देव पर्याय और धारेगा। ऐसे अनन्ते जीवन सम्बन्धी अनागत अनन्त पर्यायन मैं समय-समय क्रोध, मानादि, कषाय, राग-द्वेष भाव रूप अनन्त जीव ज्यों-ज्यौं परिणमैगें ते केवलज्ञान सर्व पहले ही जाने हैं। अनागत अनन्त पर्यायन मैं अनन्त कालको देवनकी पर्यायरूप पुदगल स्कंध, सो केवलज्ञान पहले हो जानें है। ऐसे अतीत, जनागत और वर्तमान इन काल सम्बन्धी देवनके भाव विकल्प सो अरु इन देव पर्याय रूप परिणम्या जो समय-समय अनन्त पुद्गल परमाणु सर्व क केवलज्ञानी युगपत् एक समय जान हैं और ऐसे ही एक-एक जीव अतीत अनागत काल वि अनन्तानन्त मनुष्य पर्याय नीच-ऊँच कुल तहां नीच कुल भीलादिक का और अनन्ती पर्याय ऊँच कुल क्षत्रिय वैश्यादिक का तिन में भये जो समय-समय इष्ट-वियोग, अनिष्ट-संयोग पोड़ा-चिन्तन निदानबन्धादि आर्त-भाव तथा च्यारि भेद रौद्र-भाव। इनके निमित्त पाय जो क्रोध-मानादिक राग-द्वेष भावन रूप परिखमन, तिन सर्व कं केवलज्ञानो जानैं हैं और इन अनन्त मनुष्य पर्यायन में परिशम्या जो जा-जा रूप स्पर्श रसगन्धादिक पुद्गल पर्याय स्कन्ध रूप परमाणु का परिणामन तिन सबकों केवलो जाने हैं और वर्तमान में जो सर्व संख्यावे
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