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होय । तिनकू केवली का उपदेश नाहीं। ऐसे तैरे प्रश्न का उत्तर जानना । तात जे भन्य जीव विते की हैं। सो जो । वस्तु शुद्ध होती जाते, तौ ताका इलाज भी करें हैं और जो वस्तु शुद्ध नहीं होती होय, ताका इलाज वृथा है। तात जे हठग्राहो क्रोधाधि कषाय मैल करि लिप्त, जानते पूछते ही धर्म से विमुख प्रवत तिनकौं उपदेश नाहों का। जब इनका होतव्य मला होगा तब स्वमेव ही धर्म सन्मुख होयगे। ऐसा जानना आगे कहैं हैं जो ये सर्व किसब (व्यापार) दया रहित हैंगाया-पसु रक्खो किन खेटय णिए बंदो छीन रजक रभवाहो । वणरवषो पल भक्लो, एसह किप्पाय वजयो आदा ॥६॥
अर्थ—पसु रक्खी कहिये, तिर्यश्च का पालनहारा। किस्स कहिये, खेती करनेहारा । खेटय कहिये, शिकारी। सिप कहिये, राजा। वेदो कहिये, वैद्य। छोय कहिये, छोया। रणक कहिये, धोबी। रथवाहो कहिये, रथगाड़ी होकनेहारा वरणरक्लो कहिये, माली। पलभक्खो कहिये, मांस खानेहारा–रा सहु किप्पाय वज्जयो आदा कहिये। ये सब दया रहित आत्मा जानना। भावार्थ-नाहर, सुअर, रोज, सांभर, चीता, रीछ, सीगोस, खरगोश, श्वान, मार्जार, मगर, निळून, तोतर, बाज, बुलबुल, विसम्भरादिक तथा गैया, मैं सा, मैंसी, बकरी, भेड़, बैल, हस्ती, घोटकादि-इन पशूनकों पालनहारे जीवन का हृदय दयारहित सहज ही कठोर होय है तथा सर्प,न्यौला, गोहरा, चूहे, तोतादिक जीवन के रक्षक कठोर होय हैं। इनकों पर जीवन 4 लाठी, पथरा, लात, मुंकी मारते तथा जीव रहित कार्य करते दया नाही होय। ये पशुपालक सहज हो दया भाव रहित हैं। तात जनो दया-भाव का धारी षट् काय जीवन का रक्षक पशन का संग्रह नाहीं करें। यहां प्रश्न-जो तुमने कहा कि पशनकों नाहीं पालिये सी जगह-जगह जैनो धर्नाना है सो अनेक पशु-जीवन की रक्षा करते देखिये है । कोई तौ धन खर्च घास अन्न लेग पशून कं खुवावते देखिये हैं। बन्दी मैं पड़े जे पशु ते महादुस्खी देखि केई धर्मात्मा धन देय छुड़ाय के
सुखी करें। कोई स्वानको मुख देखि रोटो डारते देखिये है । इत्यादिक विधितै पशून की रक्षा करें हैं। जा पशु २६८।। ते चाल्या नार्हो जाय, टाकूठाम ही पै तृण-जल देय पौस हैं । कोई पशु का पांव टूटि गया होय सो ताकौं तृण।। जल करि पोखि ताकी रक्षा करिये है । सो क्या उनकौं योग्य नाही? ताका समाधान-जोव पालन दोय प्रकार
है। एक तो शिकारदिक-पाप निमित्त पालिए । सो तो धर्मात्मा कुयोग्य नाहों । याते पाप उपमें है और एक