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सर्व भार तैं राह दुखी भया, घर आया। शाम को गुदरी में काठ-भार बैंचने गया। सौ मस्खा हो, दरिद्री भया खड़ा है। चिन्तामणि पास है, परन्तु भेद पाये बिना, दुखी होय रह्या है। पीछे दोई पैसा को भार देंच, घर | आया। तब पैसा स्वी के हाथ दये। कही—इनका अन्न ल्याव। जाठ कोंडी का तेल ल्याव । ताके उद्योत में
रोटो करि देना । सो पहर मर रात्रि गई तक, सब घर के मनुष्य भखे मरे, अरु चिन्तामरिण पासि है। परन्तु धि नेद पाडे, सुमनाही ना काउ बेचनहारा कहो--सिताब (शीघ्र ) रोटी करि पीछे तूंधली तें चिन्तामणि खोलि, रवी क दिया। अरु कहो—ये गोली अच्छी है। आज वन में पाई। सो लड़केकौं खेलने कौं दीज्यौ । पैसे कह के पूंछलो तें चिन्तामणि खोलि, स्त्री के हाथि दिया। सो खोल ते ही अन्धेरे घर में प्रकाश होय गया। ता प्रकाशि को देखि, अभागे-अज्ञान ने कही---भो स्त्री ! यह पथरा मला। याके प्रकाश ते रोटी किया करि । आठ कौड़ी के तेल को किफायत भई । सो शक जाले में चिन्तामणि धरि दिया। जब याके उद्योत ते, रोजि के रोजि रोटी किया करें। सो देखो, कर्म चरित्र । जो चिन्तामणि तो घर में है, . अरु दुख-दरिद्र नहीं गया ! ताका भेद नहीं पाया। याका भेद पाये बिना, बहुत दिन ल काठ का भार बह्या, दुख पाया। अरु रोसा सुख मान, जो इस पथरा को गोली ते आठ कौड़ी का रोजि तेल आवै था, सो बच्या । याके प्रकाश आगे, तैल नहीं चाहिये। तैसे ही ये कुकवि, चिन्तामणि रतन समानि उत्तम जोड़िकला का श्रुत-ज्ञान, ताक् कठेरे के आठ कौड़ी के तेलि समानि, विषय-सुरु के निमित्त वृथा कठेरे के रतन की नाई होवें हैं। तातें इन कु-कवियों का ज्ञानरूपी चिन्तामणि रतन है सो इसका भेद पाये बिना, पथरा को गोली समानि जानता। इन कु-कवीन में इस ज्ञान का भेद नहीं पाया। कैसा है यह ज्ञान ? मनोवांच्छित सुरक्षा का देनेहारा है। ताकौ पायके, ज्ञान को मन्दता दें, इन्द्रियजनित सुखा, चञ्चल, विनाशिक, तिनके निमित्त और अज्ञान जीवन का किया तुच्छ लौकिक यश ताके वास्ते भला-ज्ञान खोवें। सो ये कु-कवीश्वरन का स्वरुप जानना। तातें तिस ज्ञान कूपाय धर्मात्मा तो धर्म सम्बन्धी जोड़-कला करि पुण्य-बन्ध करें। अरु मूर्ख कवि हैं सो ज्ञान पाय खोटी जोड़ि-कला करि पाप-बन्ध करैं हैं। ऐसा जुदा-जुदा सर्व जोड़कलावारे जोवन का भाव जानना। अब उस कठेरे ने रतन पाया था, तो ताके घर में है। ताकी कथा