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पढ़े है। यात याकै मावन की शुद्धता नाहों। अरु शुद्धता बिना, सूर्य का पढ़ना-पढ़ावना वृथा हो जानना, फलदाता नहीं। बाला, पानी दि एक-चित्त करि, काय को ध्यानाकार ऐसी मुद्रा बनाये है। जैसे—भला तपस्वी । ध्यान करै। ऐसी हो नासा दृष्टि करि, बगुला भी ध्यान कर है। परन्तु परिणाम तो भले नाहीं। मच्छीन के || २० घात-रूप हैं । सो भाव प्रमाण खोटा ही फल मिलेगा। ध्यान के आकार, भली-मुद्रासहित, काया करी है सो भाव शुद्ध बिना भला-फल होता नाहीं । तातें शुद्ध भाव बिना, बगुले का ध्यान वृथा है। अर विभूति जो राख लगायै भला होय तो गर्दभ सदैव ही विभूति विषै, लोट्या हो करै । परन्तु गर्दभ के ऐसा विचार नाहीं। जो रास लगाये, मेरा भला होयगा। यह सहज ही, ज्ञान रहित है। तातें राख तनके लिपेटे पुण्य होता नाहीं। अपने भोलेपन तें, तन की शोभा मिटाना है। यानी शुद्ध-मा बिना, राक्षसगारा मोज होती हों। जो भाव-शुद्ध बिना मोक्ष होय, तो गर्दभ कौं भी होय। नगन-जन ते मोश होय, तो सर्व पशु नगन ही रहैं हैं तातै शुद्ध-भाव बिना नगन रहना, पशु के कष्ट समान है। बड़ा कष्ट पाये मोक्ष होय, तो वृतनकों होय । वृक्ष, शीत-काल में तो च्यारि महीना, शीत सह हैं। उष्ण-काल मैं, च्यारि महोना, सूर्य को प्राताप सहैं हैं। अर चारि महीना वर्षा-काल में, सर्व पानी तनपैं सहैं हैं। ऐसे तीनों ऋतु के बड़े कष्ट. शुद्ध-भाव बिना तरु सहैं हैं। परन्तु कष्ट के खाये शुद्ध-भाव बिना भला होय, तो इन वृक्षन का होता, ऐसा जानना। शुद्ध-भाव बिन्ध, मूड़ मुड़ाये भला होय, तो भेड़ का होय । भेड़ कू बरस-दिन में कई बार मडिय। सो भाव-शुद्ध बिना, मूड़-मुड़ावना कहिथे। केश-लोंचन करना, मैड़ के मुडने समानि है, ऐसा जानना। सो भावन को शुद्धता बिना, शास्त्रादि का पढ़ना सूर्य समानि है। शुद्ध-भाव बिना ध्यान, बगुले समानि है। शुद्ध-माव बिना जिभूति लगावना, गर्दम समानि है। शुद्ध-भाव बिना नगन रहना, पश समानि है । शुद्ध-भाव बिना तीनों ऋतु के तन पै कष्ट सहना. वृक्ष समानि है। शुद्ध-भाव बिना शीश मुडावना, भैड समानि है। तात है भव्य ! मोक्ष का कारण एक शुद्ध-भाव है। सो जे विवेकी हैं, ते राग-द्वेष मिटाय अपने हितकौं, पर-भव सुधारने कौं, भावन की शुद्धता करौं। यहां प्रश्न—जो तुमने कहा कि शुद्ध-भाव बिना, तप, संयम, पठन-पाठनादि धर्म का फल अल्प होय है तथा नहीं होय है। शुद्ध-भाव बिना जो स्वाध्याय-शास्त्रोपदेश करना, शास्त्र सुनना, ध्यान करना, सामायिक करना इत्यादिक धर्म के अङ्ग के सेवनहारे हैं। सो धर्म-सेवन
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