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तो धरती का धरती में रखा तथा जीवित रह्या तो याकौं धनवान जानि राजा ने कोई दोष लगाय लूटि लिया या लोभी ने पूर्व पुण्य तें पाया था। सो याने धर्म का फल कछू नाहीं पाया। ता भो भव्य हो । पापी का | धन धर्म में नाहीं लागै वृथा ही जाय। सो ये चींटी मारखी सूम इनका पैदा किया धन र नाहां भोग हैं।
और हो भोग हैं। तातै विवेकी हैं तिनकौं पाया धन तें धर्म उपार्जना योग्य है। जब राते जीव दया-रहित ।। हैं सो ही कहिये हैं
गाया--सवर खटी चियालो, मदवेचा मधपाणकर घतो। तस सट कुलहीणो, दुधितो यरय करणाये ॥ १२ ॥
अर्थ—सवर कहिये, मोल। चियालो कहिय, चाण्डाल । खर्टी कहिये, काटीका मदवेधा काहये, कलाल । मदपाणकर कहिये, मद पीनेवाला। द्यूतो कहिये जुवारी । तसयर कहिये, चोर । सठ कहिये, अज्ञान। कुलहीसो कहिये, कुलहीन। दुठचित्तोय कहिये, दुष्ट परिणामी। रहय करणाये केहिये, ये सर्व दया करि रहित हैं। भावार्थ-वनचर-वन का रहनेहारा पशु, ता समानि अज्ञान, नाहर समानि हिंसक, रोसा जो भील का हृदय, सो सहज हो दयारहित-कठोर होय है। यातें दया नहीं बने तथा मृत पशन का चरम उतारै.. घर ल्यावै, धोवे पकावै, रंग, बेचै सो खाटीक । याका भी चित्त महा अनाचार रूप, वन परिणामी, यात दया नाहीं पलै और जाके सदेव जोवन की हिंसा करि, जीवन का मांस बेचवे का किसब है, सो चाण्डाल है। सो ये भी महानिर्दयी है। यातें भी दया-भाव नहीं पले और मद बेचा कहिये कलाल, दाल का बेचनहारा। अनेक जीवन की घाति करि, मद करे। अनेक कृमि, पानी में बिलबिला उठे। उनकौं उछलती देखे, तब उस जल कं यन्त्र में डालि, दारू । करते, ताकौं दया नहीं होय। तात ये भी दया नहीं पाले और मद का पीवनहारा, बेसुध-दया रहित है और चोर, जे पर धन का हरनहारा, महानिर्दयी, तातें भी दया नाही बगै और शुभाशुभ विचार रहित, जन्म का अज्ञानी, काद्य-अकाद्य के ज्ञान रहित, पुण्य-पाप भावना रहित, भोले जीव, यातें भी दया नहीं पल। काहे ते जो
दया तो, पुण्य-पाप में समझ.. ज्ञानवान होय, तातै सधै है। सो ये ज्ञान रहित है, यात दया नाहीं बने और कुल- | गि २९२ हीन होय, तातें भी दया नाहीं बने। जो ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय--इन तीन कुल के उपजे, ऊँच-कुली हैं, इनते
दया बने है और आगे कह ारा भीलचाण्डालादिक नोच-कुल के जीव, तिनत दया-भाव नहीं बने और जाका