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श्री
सु
他
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मैं
दुख नाहीं । अन्य जीवकूं मोक्ष भए आपकूं मोक्ष नाहीं तातें संसार विषै अनन्ते जीव हैं सो सर्व भिन्न-भिन्न हैं। अपने-अपने परिणाम के भोगता हैं और संसारी भोरे जीव भी ऐसी कहें हैं कि जो करेगा सो पावैगा ऐसी सर्व जगत् मैं बात प्रगट है । तातें अनेक नयन करि भी विचार देखि कि आप तैं भिन्न और अनन्ते जीव हैं । सो भी परद्रव्य जानि तजवे योग्य है । तातें हैय किये है। ऐसा समाधान जानना और भी सम्यग्दृष्टि समता रस प्रगट भरा वैराग्य बढ़ावे कूं जगत् का स्वरूप विचारें । सो द्रव्यन मैं अल्प बहुत तो ऐसे विचारें जो जीव द्रव्यन तीन गति के जीव तो बहुत हैं और मनुष्य गति के जीव द्रव्य बहुत ही धोरं हैं। तहां देव व्यारि प्रकार हैं। सो जुदे- जुदे असंख्याते हैं और नारकी सात हैं। तहां भी एक-एक मैं जीव असंख्यात हैं और तिर्यञ्च गति विर्षे जोव तथा पृथ्वीकायिक अपकायिक, तेजकायिक, वायुकाधिक इन सर्व में असंते असंख्याते जीव हैं । तिन सर्व तैं थोरी जीव राशि अग्रिकायिक है। सो भो असंख्यात लोकन के जेते प्रदेश होंय तेते जानना । सोई बताइए है। एक सूच्यांगुल क्षेत्र प्रमाश एक प्रदेश सूची में केते प्रदेश हैं सो सुनौं । असंख्यात सागर के जेते समय होंय ते प्रदेश जानना। एक अंगुल के क्षेत्र के ऐते प्रदेश होंय तो हाथ भर के केते प्रदेश होंय ? एक कोस के केते होय ? तौ सर्व लोक के केते होंय ? सो ऐसे-ऐसे असंख्यात लोक के जेते प्रदेश हैं तेते तेजकायिक जीव जानना । सर्व तैं थोरे हैं और इन तेजतें असंख्यात अधिक पृथ्वोकाधिक हैं। पृथ्वी तैं असंख्यात बढ़ते अपकाधिक हैं। अधिक वायुकायिक हैं वायुकायिकर्ते असंख्यात अधिक प्रत्येक वनस्पति के जीव हैं। प्रत्येकतें तथा सर्व जीव राशि अनन्तगुणे साधारण वनस्पति जीव हैं। इनही पञ्च स्थावरन मैं सूक्ष्म और बादर दोय भेद हैं। तहां आश्रय बिना उपजैं आयु अन्त बिना मरें नाहीं काहूतें रुक न सकै सो सूक्ष्म हैं। परकों रोकें परतें आप रुकें शास्त्रादिकर्ते घात पावैं सहायतें उपजैं सो बादर हैं। सो बादर चार स्थावरन मैं असंख्यात हैं। बादर असंख्यातगुणे सूक्ष्म हैं साधारण मैं बादर अनन्त हैं। तातें अनन्तगुणे सूक्ष्म साधारण हैं। वेन्द्रिय तेन्द्रिय, चौन्द्रिय, पंचेन्द्रिय व तिर्यञ्चराशि असंख्यात असंख्यात है और कर्मभूमि के मनुष्य सर्व संख्यात हैं। ऐसे जीवद्रव्य अपेक्षा कथन ह्या इति द्रव्य-क्षेत्र काल-भाव का स्वरू। आगे षट्कायिक जीवन के शरीरन के जाकार कहिए हैं। तहां पृथ्वीकायिक का आकार मसूर के समान है और अपकायिक का आकार जलबिन्दु
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