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परिखमते हैं । तिन सबकू अपने विषय प्रमाण क्षेत्र काल की अवधिज्ञानी जाने हैं। ऐसे अतीत जनागत वर्तमान काल सम्बन्धी द्रव्य क्षेत्र काल भाव को अपने विषय योग्य दुरवर्तो तथा नजदीकवर्ती सर्व पदार्थनक. अवधिज्ञानी जाने । सो अवधिज्ञान तीन प्रकार है। सो ही कहिये है---देशावधि, परमावधि और सविधि । तहाँ देशावधि के षट् मैद हैं। तिनकू कहिये है। अनुगामी, अननुगामी, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित बरु अनवस्थित-ए षट्र भेद हैं। अब इनका सलान्य पक्षस वाहिगे है। जो अत्यविशान जिन्स एथि में मया, तामैं आयु पर्यन्त रहे, अर्थ-वारा जोव परगति जाय, तब भी याको संग पर-गति मैं जाय, सो अनुगामी कहिये। शो अवधिनान भले निमित्त पाय, जा पर्याय व जा स्थान में भथा, सो ताही पर्याय व ता स्थान पर्यन्त रहै। परन्तु अन्य गति व अन्य स्थान में संग नहीं जाय, सो अननुगामी कहिये । २। और जा अवधिज्ञान से जबतें शुम निमित्त भया, तबते पर्याय पर्यन्त अपनी स्थिति प्रमाण काल ताई समय-समय विशुद्धता सहित, ज्ञान के अंश वृद्धि ही भया करें, सो वर्तमान अवधिज्ञान जानना । ३। जो अवधिज्ञान, महाविशुद्धता के प्रभावते भला निमित्त पाय जिस जीव जा, समय भया, तबही ते अवधिज्ञान के अंश घटते जांय सो पर्याय पर्यन्त घट्या ही करें। अपने काल स्थिति की मर्यादा मैं घट चुक, सो हीयमान अवधिज्ञान जानना। ४। और जो अवधिज्ञान जबतें मया तबतें जैसा का तैसा रहैं । अपने काल-प्रमाण जेती स्थिति या ज्ञान को रहै, तेते अंश घट-बढ़े नाहीं। जा समय उपजा था, तेते ही अंश रहैं, सो अवस्थित अवधिज्ञान कहिये ।। और जो अवधिज्ञान जबसे भया, तबत कबहूँ तो घटै, कबाहूं बढ़े, ऐसे चपल रह्या करै, सो अनवस्थित अवधिज्ञान कहिये।६। ऐसे इस देशावधि के षट भेद है। तहाँ जनुगामी के तीन मैद हैं। एक स्व-स्थान अनुगामी, एक पर-स्थान अनुगामी, एक उमय अनुगामी। तहां जो अपने क्षेत्र में ही यावज्जीवन अपने साथ जावे अथवा भवान्तर में जावे, उसे स्व-क्षेत्र अनुगामी कहै हैं। जो पर-दोत्र में यावजीवन अथवा भवान्तर में अपने साथ जावे, उसे पर-क्षेत्रानुगामी कहते हैं तथा जो स्व-क्षेत्र व पर-क्षेत्र में यावजीवन व भवान्तर में साथ जावे उसे उभयानुगामी कहते हैं। अननुगामी भी तीन प्रकार है-स्व-क्षेत्राननुगामी, परक्षेत्राननुगामी और उमयाननुगामी। तहां जो स्व-क्षेत्र में भी आयु पर्यन्त अथवा भवान्तर मैं साथ न जावे, उसे स्व-क्षेत्राननुगामी कहते हैं। जो पर-तेत्र में और भवान्तर में साथ न जावे उसे पर-क्षेत्राननुगामी कहते हैं तथा
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