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॥ २१.
जो स्व-क्षेत्र में आयु पर्यन्त अथवा भवान्तर में और पर-क्षेत्र में साथ न जावे, उसे उभयाननगामी कहते हैं। तीन मैद अननुगामी के कहै। अब आगे क्षेत्र-काल अपेक्षा अवधिज्ञान की अधिकता तथा हीनता रूप कथन करें हैं, सो सुनो। जो जीव अवधि तै क्षेत्र-अपेक्षा जितने क्षेत्र की जाने है, सो काल-अपेक्षा थोरे काल की जाने है। | रीसे और भेद कहिये हैं-तहां जघन्य अवधि का धारी, जो जीव क्षेत्र अपेक्षा अंगुल के असंख्यातवें भाग क्षेत्र की जानें, सो ही जीव काल अपेक्षा, प्रावलि के असंख्यात भाग काल की जानें, सो भी असंख्यात समय जानना और जो जीव अंगुल के संख्यातवें भाग क्षेत्र की जान, सोही जीव काल अपेक्षा, जावलि के संख्यातवें भाग काल को जानें। ए प्रथम भेद है। । और दूसरे मेद में जो जीव अंगुल मात्र क्षेत्र की जाने, सो ही जीव काल अपेक्षा. किश्चत् न्युन आवलि मात्र काल की जान । २। और तीसरे मेद में क्षेत्र अपेक्षा, जो जीव सात जाठ अंगुल के क्षेत्र को जानै, सो ही जीव काल अपेक्षा, सात आठ आवली काल की जाने ।३। और चौथे भेद में क्षेत्र अपेक्षा, जो जीव एक हाथ क्षेत्र को जाने, सो ही जीव काल अपेक्षा, अन्तमहत काल की जान है।४। और पञ्चम भेद में क्षेत्र अपेक्षा जो जीव राक कोस क्षेत्र को जाने, सो ही जीव काल अपेक्षा, अन्तर्महर्त काल को पाने । ५।
और छठे भेद में क्षेत्र अपेक्षा जो जीव एक योजन क्षेत्र की जाने, सो ही जीव काल अपेक्षा, किञ्चित् न्युन अन्तम हुर्त काल की जाने।६। और सातवें भेद में क्षेत्र अपेक्षा, जो जीव पच्चीस योजन को जाने, सो ही जीव काल अपेक्षा, किंचित् न्युन राक दिन-काल की जाने । ७। और आठवें भेद में क्षेत्र अपेक्षा, जो जीव भरत क्षेत्र प्रमाण क्षेत्र की जाने, सो ही जीव काल अपेक्षा पंच दिन काल की अगला-पिछली जान है।८। और जे जीव क्षेत्र अपेक्षा, जो जीव जम्बुद्वीप प्रमाण क्षेत्र की जाने, सो ही काल अपेक्षा. किंचित् न्यून एक मास की जाने है ।।
और दश भेद में क्षेत्र अपेक्षा, जो जीव अढ़ाई द्वीप क्षेत्र की जाने, सो ही जीव काल अपेक्षा, एक वर्ष काल की जाने है ।२०। और ग्यारहवें भेद में क्षेत्र अपेक्षा. जो जीव कुण्डलगिरि ग्यारहवें द्वीप पर्यन्त क्षेत्र की जान, सोही जीव काल-अपेक्षा, कछू घाटि आठ सात वर्ष की जानै ।श और बारहवें भेद में क्षेत्र अपेक्षा, जो जीव संख्यात द्वीप समुद्र क्षेत्र की जानें, सो ही जीव संख्यात वर्ष काल की जाने है। १२ और तैरहवें भेद मैं जो जीव क्षेत्र अपेक्षा, असंख्यात गोजन की पान, सो हो जीव काल अपेक्षा असंख्यात वर्ष-काल की मी शिकली पाते |
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