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। तिर्यंच सम्बन्धी सर्व स्थानकन मैं उपजें हैं। विशेष एता जो पंच स्थावरन मैं के अनिकाय-वायुकाय के || | जीव मनष्य मैं नहीं होय। पंचेन्दिय सैनी तिर्यच मर करि मन विकल्प बिना शभ-भावन ते भवनत्रिक मैं | । उपजें हैं। विकल्प बिना अशुम-भाव तें मरि, प्रथम नरक पर्यन्त उपजें हैं। भोग-भमि बिना, कर्म-भूमि के । मनुष्य-तिर्यचन मैं सब स्थानकन में उपजें हैं। सैनी पवेन्द्रिय तिर्यच. भवनत्रिक तें लगाय सोलहवें स्वर्ग पर्यन्त । तो देवमैं उपजें हैं। सातों होगरको : कालिम केनण्य तिर्यच. एकेन्द्रियादि पंच स्थावरन मैं विकलत्रय, सैनी, असैनी वि उपजें हैं तथा भोग-भमि के मनुष्य-तिर्यंच विर्षे उपजें हैं। ऐसी तिर्यंच की जागति कही। इति तिर्यंच की जागति। आगे तिर्यच गति में आगति कहिये है। तहां पंच स्थावर विकलत्रय इनमें सर्व देव व सात ही नरक के और मोग-ममियां बिना कर्म-भमि सम्बन्धी सर्व मनुष्य-तिर्यंच उपजें हैं। विशेष यता जो अग्नि-वायु बिना तीन स्थावरन मैं भवनत्रिक के तथा पहले-दूजे स्वर्ग के देव आय उपज हैं। सेनी पंचेन्द्रिय तिर्यंच में, भवनत्रिकतें लगाय बारहवें स्वर्ग पर्यन्त के देव और भोग-भूमि बिना, सात हो नरक के जीव आय उपजें हैं और कम-भमि के एकेन्द्रिय आदि विकलत्रय पंचेन्द्रिय पर्यन्त सर्व जीव एकेन्द्रिय आदि पंचेन्द्रिय तिर्यंच विर्षे आय उपज हैं। इति च्यारि गति सम्बन्धी आगति-जागति कथन । रोसै च्यारि गति दण्डकन का कथन श्रुत-ज्ञान तें जानिये है। तात अत-ज्ञान उपादेय है और इस ही श्रत-ज्ञानते निमित्त-उपादान का स्वरूप जानिये है। सो ही कहिये है। प्रथम नाम-निमित्त और उपादान। अब इनका विशेष कहिये है। जो द्रव्य की शक्ति, द्रव्य ही ते उपजे, सो तो उपादान कहिये। पदार्थ के मिलाप त शक्ति प्राट, सो निमित्त कहिये। जैसे जीव विर्षे, शुभाशुभ रूप होय राग-द्वेष परिणमन की शक्ति, सो तो जीव का "उपादान" है। जिन पदार्थन ।। के निमित्त पाय राग-द्वेष रूप भया, सो वह पर-पदार्थ "निमित्त" है। सो इस निमित्त-उपादान से ही शुभाशुभ रं कर्म-बन्ध आत्मा के होय हैं। सो हो कहिये है। जैसे-जोव का उपादान भी भला होय। पूजा, दान, शोल, । संयम, तप, जिन-शास्त्रन का स्वाध्याय तथा सुनना तथा मुनि श्रावकादि धर्मो जीवन का संग इत्यादिक शुभ ही निमित्त होय, तौ दीर्घ स्थिति लिये शुभ-भाव-कर्म उपचैं। ताके फल, आत्मा भव-भव सुखी होय। जहाँ जात्मा का उपादान सोटा होय। क्रोध, मान, माया, लोभ, चोरी, जुआ, पर-स्त्री, हाँसी, कौतुक, दुराचारी, सुरापायी
जसे जीव
वियही ते उपजे, सोमबम नाम-निमित